इंद्रमणि बडोनी की याद से डर क्यों?
राज्य लोक संस्कृति दिवस पर सन्नाटा
विक्रम बिष्ट
उत्तराखंड के गांधी स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी की 95वीं जयंती 24 दिसंबर प्रायः खामोशी से गुजर गई। ठीक उसी तरह जैसे बड़ोनी जी 18 अगस्त 1999 को गुजर गए थे । तब सरकार को महीनों से बीमार चल रहे इस सन्त तुल्य जननेता की सुध नहीं थी। अंतिम सांसें ले रहे बेहोश बडोनी जी को इलाज के लिए पैसे भेज कर तब उत्तर प्रदेश की सरकार ने अपना कर्तव्य निभाया। उत्तराखंड सरकार ने कुछ अखबारों को इस जन्म दिवस पर विज्ञापन में चंद पंक्तियां और फोटो के साथ नमस्कार की रस्म अदायगी पूरी कर ली। संयोग देखिए कि 1999 में उत्तर प्रदेश में जिनकी सरकार थी, उत्तराखंड में आज उनकी ही सरकार है।
लेकिन याद तो ठीक तरह से उस उत्तराखंड क्रांति दल ने भी नहीं किया, जिसको 90 के दशक में इंद्रमणि बडोनी ने लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुंचा दिया था गरीब ब्राह्मण परिवार में 24 दिसंबर 1925 को जन्मे इंद्रमणि बडोनी ने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत गांव से कि उनके पिता सुरेशानन्द पंडित आई करते थे,उनका नैनीताल में एक रिक्शा भी था । जखोली के ब्लाक प्रमुख से लेकर उत्तर प्रदेश विधानसभा के तीन बार सदस्य चुने गए। पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे।
1967 में पहली बार निर्दलीय विधायक बडोनी को जल्दी ही आभास हो गया था कि उत्तर प्रदेश में रहते पहाड़ों का भला नहीं हो सकता है। विधानसभा में उनके भाषण और सरकार को लिखी चिठ्ठियां जन सरोकारों के प्रति उनकी निष्ठा और गहरी समझ के प्रतिबिम्ब हैं। 1973 में उन्होंने उत्तरांचल राज्य परिषद का गठन कर पृथक पहाड़ी राज्य का नारा बुलंद किया । कुछ समय बाद इस संगठन का विलय पौड़ी में कांग्रेसी सांसद प्रताप सिंह नेगी की अध्यक्षता वाली उत्तराखंड राज्य परिषद में हो गया अल्मोड़ा के सांसद नरेंद्र सिंह बिष्ट , विधायक चन्द्र सिंह रावत और लक्ष्मण सिंह अधिकारी परिषद के प्रमुख नेता थे ।
राज्य आंदोलन को संगठित करने के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति और प्रख्यात भौतिक विज्ञानी डॉ डीडी पंत की अध्यक्षता में 25 जुलाई 1979 को मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना हुई। कुछ समय बाद ऋषिकेश अधिवेशन में उन्होंने उक्रांद की सदस्यता ली और वरिष्ठ उपाध्यक्ष बने । फिर ताउम्र उक्रांद और 1994 से उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के संरक्षक बने रहे । रानीखेत से उक्रांद के पहले विधायक रहे जसवंत सिंह बिष्ट के साथ बडोनी ने नारायण आश्रम तवाघाट से 8000 किलोमीटर पदयात्रा की। दो अगस्त 1994 को उत्तराखंड राज्य निर्माण, ओबीसी आरक्षण, वन संरक्षण अधिनियम संशोधन, पंचायतों के परिसीमन सहित पांच मुद्दों पर उन्होंने छह सहयोगियों के साथ बेमियादी अनशन शुरू किया। 6-7 अगस्त की रात प्रशासन-पुलिस ने अनशनकारियों को बल पूर्वक उठा लिया। इसकी ज़बरदस्त प्रतिक्रिया हुई। पूरा पहाड़ सुलग उठा। खटीमा ,मसूरी ,मुजफ्फरनगर, देहरादून, कोटद्वार, नैनीताल में पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाई। रामपुर तिराहा (मुजफ्फरनगर) में उत्तर प्रदेश पुलिस ने संपूर्ण मानवता को शर्मसार करते हुए महिलाओं से दरिंदगी की । ठीक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती 1-2 अक्टूबर 1994 की दरमियानी रात।
सत्ता की क्रूर दमन, शहादत तों,अनथक संघर्ष ने उत्तराखंड राज्य को जन्म दिया। तब जो जन आंदोलन से खेल रहे थे।कुचक्र रच रहे थे। बारी-बारी से सत्ता भोगते रहे आये हैं। कोशिशें वयही है कि वर्तमान और भावी पीढ़ियां उत्तराखंड राज्य की उस मर्मान्तक किंतु गौरवशाली महागाथा को न जान-समझ पाएं। यदि इंद्रमणि बडोनी के नाम पर रस्म अदायगी की बजाय उनके योगदान की चर्चा होगी तो आज के कई नामचीन नेताओं आंदोलन के स्वयंभू सूरमाओं को दिक्कतें होंगी। ऐसे ही एक कांग्रेसी सूरमा कुछ समय पहले नई टिहरी में अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं को एक बार ब्रह्मज्ञान दे रहे थे कि जब मैं इंद्रमणि बडोनी को उत्तराखंड में लाया था….।
1989 के चुनाव में टिहरी लोकसभा सीट पर बडोनी जी उक्रांद प्रत्याशी थे। उनके सामने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ब्रह्मदत्त कांग्रेस प्रत्याशी थे । तब उम्मीदवारी के लिए ₹500 जमानत राशि निर्धारित थी। नामांकन के वक्त बड़ोनी जी के पास मात्र ₹270 थे। कार्यकर्ताओं ने शेष पैसे दिए। संसाधनों के मामले में वह राजा भोज और गंगू तेली जैसी प्रतिस्पर्धा थी । लगभग डेढ़ लाख मत हासिल कर इंद्रमणी बड़ोनी ग्यारह हजार मतों से हारे थे । तीन बार विधायक रहे बड़ोनी जी की मृत्यु पूर्व मासिक आय मात्र ₹डेढ़ हजार थी, मय विधायक पेंशन ।
नरेंद्र नगर में तैनात प्रशासन के एक अधिकारी अशोक कुमार शुक्ला ने अपने संस्मरण में लिखा है कि मृत्यु से पहले बडोनी जी के इलाज के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से बड़ी धनराशि भेजी गई थी । लगभग 3 सप्ताह टिहरी के कोषागार में पड़ी रही थी । जब प्रशासन के आला अफसरों को सूचना मिली तो अंतिम क्षणों में उन्होंने सुबोध उनियाल के सहयोग से मुनि की रेती बडोनी जी के आवास पर परिजनों तक पहुंचाई ।
उत्तराखंड सरकार ने 15 नवंबर 2016 को बडोनी जयंती को राज्य लोक संस्कृति दिवस घोषित किया है। इसके तहत प्रदेश में भर में सांस्कृतिक ,ज्ञानवर्धक कार्यक्रम आयोजित करने के दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। पता नहीं यह कार्यक्रम किस प्रदेश में आयोजित हो रहे हैं? बीते सप्ताह शासन ने 9 लाख रुपये जारी किए हैं।
आज की सर्वग्राही राजनीति के समय में महात्मा गांधी और पहाड़ी गांधी की प्रासंगिकता पूरी व्यवस्था में डर पैदा करती है। इसलिए इनको क्रमशः भूलना ही बेहतर है?