बुधू बेकरार……. दिख जा रे–! एक बार को–रो–ना–!
गढ़ निनाद न्यूज़ * 29 अप्रैल 2020
नई टिहरी। कसम से बुधू को बुधू होने का गम नहीं है। पूरी मिल जाए तो खुश, पव्वा भी न मिले तो गम नहीं। कोरोना खोज में बुधू को कई रहस्य हाथ लगे हैं। पहला तो यही कि बुधू सूदू ही बदनाम है कि पीता है। बदनाम होने का गम नहीं है। ज्ञानी लोग कह गए हैं कि बदनाम हुए तो क्या नाम तो हुआ। गुमनाम नहीं होना चाहिए। गम इस बात का है कि बुधू पीने के मामले में पिछड़ा है, बल्कि अति पिछड़ा है। कोरोना युग की शुरुआत से पहले बुधू को अभिमान था कि बड़े-बड़े पियक्कड़ बुधू के सामने जीरो हैं। अब ज्ञात हुआ है कि होली, दिवाली, शादी, बर्थडे, दुश्मन मरण डे पर पीने की मजबूरी के मारे आजकल दारू के लिए गली-गली मारे-मारे भटक रहे हैं।
अपनी बदतमीजियों को दूसरों की तमीज से सौ टका सभ्य मानकर इतराने वाले सुरा देवी की कृपा पाने के लिए क्या-क्या नहीं कर रहे हैं। इतने बुरे दिन तो गांधी, अंबेडकर जयंती में भी नहीं बीते। इनका असंतोष अब आपे से बाहर हो रहा है। सरकार सुनो, यही लोग हैं जो कोरोना को सबक सिखा सकते हैं। बेटा कोरोना अब तेरी खैर नहीं है। तू इतने दिन से बुधू से छिप रहा है। इनसे कैसे छिपा रहेगा। बड़े-बड़े प्रतापी, संतापी, प्रपंची हैं। नेता, अफसर, सूदखोर, घूसखोर सबके चहेते हैं। इनको बड़े-बडे मठाधीश भी चढ़ाते हैं। इनके शाप में बल है। वैज्ञानिकों, डॉक्टरों से बच जाओगे, इनसे कैसे बचोगे। कहां जाकर छिपोगे। इनको कोने कोने की खबर रहती है।
पर बुधू को इन सबसे क्या। मतलब तो कोरोना से है। अबे ओ कोरोना बे, कहां छिपा है, दुनिया का खून पीकर मदमस्त! मैं वादा करता हूं तेरे बारे में किसी को कुछ नहीं बताऊंगा। तेरी कृपा का वैसे ही बखान करूंगा जैसे हर युग के भाट, चारण करते रहे हैं। एक तू ही है जिसने कोने कोने में छिपे दानवीरों को बाहर निकाल दिया है। नोच-नोच कर खाये अघाये दिल खोलकर बांट रहे हैं। रिश्ववत का बाजार बंद है। पक्षी खुली हवा में सांस ले रहे हैं। सुना है गंगा में बहाया कचरा साफ हो रहा है। गंगा सफाई के अरबों रुपए तो पहले ही ठिकाने लग चुके हैं।
तू एक बार दर्शन दे, मैं कोरोना महाकाव्य लिख दूंगा। तेरी स्मृति में कोरोना मंच खड़ा करूंगा। मुझे पता है तेरे भय से दुबके रिश्वतखोर काला बाजारी दरअसल आजकल अपने खाते-बही सही कर रहे हैं। तेरे जाने के बाद वे सब बाहर निकल हिसाब चुकता करेंगे। तू मुझे ना दिखा तो, खुजलीबीरों के तो भाग खुलने ही हैं, तेरा कोई नाम लेवा नहीं रहेगा
तू एक बार चुपके से सामने आ,मैंने तो कोरोना महाकाव्य के पात्र भी तय कर दिये हैं। कोरोना रोग निवारण दवा-दारू,तंत्र मंत्र, गण्डा-ताबीज़ से लेकर आने वाली कठिनाइयों से भरे दिनों में जनता के बचे खुच्चे खून चूसने के लिए तैयारी में लगे तमाम सफ़ेदपोश! बस दिख जा रे–सिर्फ एक बार। तेरे दर्शन को बेकरार (समझा कर खोच्चे! शाम के जुगाड़ का सवाल है)
बेकरार –बेकरार–तेरा–यार -बुधू।
( लेख में बुधू ने अपनी व्यथा बखान की है। इससे संपादक का सहमत होना न होना जरूरी नहीं )