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कोरोना की चुनौती भारत के लिए एक अवसर

कोरोना की चुनौती भारत के लिए एक अवसर
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वायरस से विश्व का युद्ध होगा किसी ने भी कल्पना नहीं की थी

गढ़ निनाद न्यूज * 12 मई
डॉ0 दलीप सिंह

दुनिया की महाशक्तियां जहाँ परमाणु हथियारों की प्रतिस्पर्धा में इतने मशगूल थे कि उन्हें इसके सिवाय कुछ भी सूझ नही रहा था। अमेरीका और ईरान के तनाव को देखते हुए रक्षा विशेषज्ञ विश्व युद्ध की भविष्यवाणी करने में लगे थे। विशेषज्ञ यह भी गुणा-भाग करने में लगे हुए थे कि किस देश के पास कितने सैनिक, कितने हथियार, परमाणु बम आदि मारक क्षमता की सामग्री है? कौन सा देश कितना शक्तिशाली है? आदि का विश्लेषण किया जाने लगा था। लेकिन कोरोना वायरस की आहट ने सबके होश पुख्ता कर दिये। महाशक्तियों के दुनिया को तबाह करने वाले शक्तिशाली बम इस वायरस के सामने निष्क्रिय हो गये है। दुनिया की सुपर पावर कहे जाने वाला अमेरीका सरीखे देश इसके सामने लाचार और विवश है। इटली, फ्रांस, ईरान, ब्रिटेन, जापान आदि दुनिया के विकसित देशों ने भी इस वायरस के सामने हाथ खड़े कर दिये है। कल तक जो देश एक-दूसरे को सबक सिखाने की धमकी देते फिर रहे थे, उन सबकी बोलती कोरोना वायरस के सामने बंद हो गई है। सभी देश इसको लेकर गहन चिंता और चिंतन में हैं!

लेकिन एक ओर जहां दुनिया इस वायरस को लेकर भयभीत है, वही इस वायरस ने दुनिया का ध्यान खीचते हुए मानवता का पाठ पढाने का अच्छा काम भी किया है। वायरस जनित महामारी ने विश्व की महाशक्तियों को यह समझा दिया है कि गोली-गोली में क्या फर्क है? अब उन्हें तय करना है कि उन्हें जीवन बचाने वाली गोली चाहिए या जीवन लेने वाली गोली। इसी का परिणाम है कि जो देश घातक हथियारों के परीक्षण में लगे हुए थे, उनकी आहट कम सुनाई देने लगी है, और इस वायरस से जीवन कैसे बचाया जा सकता है? इस पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। जो देश मानवता के विनाश की सामग्री जुटाने में रात-दिन एक कर रहे थे, आज मानवता को बचाने के लिए एकजुटता की बात करने लगे हैं। इस वायरस ने दुनिया के सामने चुनौती खड़ी कर दी है कि यदि मानवीय जीवन को स्वस्थ एवं खुशहाल रखना है तो घातक हथियारों की नही जीवनोपयोगी दवाईयों की आवश्यकता है। जो देश भारत को मात्र हथियारों के उपभोक्ता के रूप में देखते थे, आज वही देश हाईड्रोक्सीक्लोराक्वीन की गोली के लिए भारत के सामने घुटनों के बल खड़े है।

सभी को यह समझ लेना चाहिए कि समय और परिस्थितियों को बदलने में वक्त नही लगता है, और सूई की जगह सब्बल और सब्बल की जगह सुई काम नही कर सकती है। इस महामारी ने दुनिया की अर्थव्यस्था से लेकर तमाम वस्तुओं पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। जिससे उभरने में दुनिया को वर्षो लग जायेगा, परन्तु दूसरी ओर इसके सकारात्मक परिणाम भी प्रकृति में देखने को मिल रहे है। इस वायरस ने दुनिया के साथ-साथ भारत में जल, थल, नभ प्रदूषण को रोकने में अहम भूमिका निभाई है। जिसे नजरअंदाज नही किया जा सकता है। दूर-दूर तक साफ आसमान, हवा एवं ध्वनि प्रदूषण का कही नामोनिशान नही, साफ नदियों का जल, वातावरण में फैली रहने वाली धुंध गायब हो गई है। विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी सर्वत्र घूमते हुए दिखाई देने लगें हैं। जिसने देश-दुनिया की आवो-हवा को बदलकर रख दिया है। लाॅकडाउन से एक उम्मीद की किरण नजर आती है कि इस प्रकार की कार्ययोजना बनाकर प्रकृति को बचाने के लिए एक सर्वोतम माॅडल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

जहां इस वायरस के कारण मानव जीवन पर दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेंगे, वहीं काफी कुछ दुनिया को सीखने का अवसर भी मिल रहा है। इस समय ने दुनिया को सोचने के लिए विवश कर दिया है। कोरोना ने दुनिया की विदेश नीति की दशा व दिशा को भी बदल कर रख दिया है। दुनिया यह सोचने के लिए मजबूर हो गई है कि उसे बन्दूक की गोली से ज्यादा दवाई की गोली की आवश्यकता है। अब यह मानव समाज पर निर्भर करता है कि हम इसे चुनौती के रूप में लेते है या अवसर के रूप में? दोनों तरह से गेंद हमारे पाले में है। भारत के लिए तो यह एक बड़ा अवसर है कि इस विपदा की घड़ी में दुनिया हमारी ओर आशाभरी नजरों से देख रही है। अब तक इस वायरस से लड़ने में हम सफल हुए है, और अगर इस आपदा से बाहर निकलने में सफल हो गये तो देश के पास विश्वगुरू बनने का सुनहरा मौका है। यह सब सरकार के साथ-साथ यहां के जनमानस पर निर्भर करता है कि वह इस आपदा की घड़ी में सरकार का कितना साथ देती है। कुल मिलाकर कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है और कुछ समय की परेशानियों के बाद यदि देश का गौरव बड़ता है तो इससे बड़ी उपलब्धि कोई नही हो सकती है।

यदि किसी देश ने इस वायरस को जैविक हथियार के रूप मे इस्तेमाल करने की कोशिष की है तो उन्हें अटल जी की कविता की इन पक्तियों को याद रखना चाहिए:

इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो
चिंगारी का खेल बुरा होता है।
औरों के घर आग लगाने का जो सपना
वह अपने ही घर में सदा खरा होता है।
पीपल लगाओ, प्रदूषण भगाओं।
ऑक्सीजन बढाओं, सुखी जीवन पाओं।

यादेंः एक सामाजिक आंदोलन
अपने प्रियजनों की याद में एक पीपल अवश्य लगाए

डॉ0 दलीप सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष,
राजनीति विज्ञान विभाग

अ0 प्र0 ब0 राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्त्यमुनी, रुद्रप्रयाग


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