वैकल्पिक ऊर्जा उपयोग की ओर बढ़ते कदम: चंबा के चौखाल में स्थापित हुआ सौर ऊर्जा प्लांट
500 किलोवाट की परियोजना ने काम करना किया शुरू
पहाड़ में वैकल्पिक ऊर्जा के लिए शुभ संकेत
रघुभाई जड़धारी
गढ़ निनाद न्यूज़ * 11 जून 2020
यूं तो भारत सहित दुनिया के कई देशों में सौर ऊर्जा की ओर लोगों का लगातार रुझान बढ़ रहा है और अब सरकार की भी योजना है कि बिजली के विकल्प के रूप में सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित किया जाए। इसके लिए सरकार का उरेडा विभाग काम कर रहा है।
हालांकि लोगों को उरेडा के कार्यों की अधिक जानकारी नहीं है और कम लोग ही इसका लाभ ले रहे हैं। जो जागरूक लोग हैं उनका रुझान इस ओर अधिक हो रहा है। पहाड़ों के लिए अच्छी खबर यह है कि अब यहां के कुछ जानकार लोग इसका महत्व जान गए हैं और इसे आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
उत्तराखंड के टिहरी जिले के चंबा नगर के नजदीक चंबा से मात्र 4 किलोमीटर दूर चंबा-मसूरी मोटर मार्ग पर चौखाल में सौर ऊर्जा प्लांट कुछ समय पूर्व स्थापित हुआ है। जिसने काम करना शुरू कर दिया है। सौर ऊर्जा प्लांट को स्थापित किया है सिलकोटि- मज्याड़ गांव के भगवान सिंह पुंडीर जी ने। वे ऊर्जा निगम के बड़े ठेकेदारों में गिने जाते हैं और पूर्व में जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। कुछ दिन पूर्व मैं उनके सौर ऊर्जा प्लांट को देखने गया तो फिर उसके बारे में रोचक जानकारी प्राप्त हुई।
टिहरी (उत्तराखंड): चंबा-मसूरी मोटर मार्ग पर चौखाल में स्थापित 500 किलो वाट क्षमता का सौर ऊर्जा प्लांट।
— Green Voice India (@GreenVoiceIndia) June 11, 2020
स्वामी- भगवान सिंह पुंडीर, सिलकोटि-मज्याड़ गांव वाले
क्षमता – 500 किलो वाट छमता 500 किलो वाट क्षमता#solarenergy #solarpower #solarpanels #energyproduction #GreenNatureNews pic.twitter.com/NpNazJ2W0N
उन्होंने धारवाली जगह में अपनी निजी पट्टे की भूमि पर जो सौर ऊर्जा प्लांट स्थापित किया है वह 500 किलो वाट क्षमता का है। वे सरकार अर्थात ऊर्जा निगम को बिजली विक्रय करने लगे हैं। प्लांट की कुल लागत करीब ढाई करोड़ रुपए है। उन्हें यह काम कैसे मिला तो उन्होंने बताया कि उरेडा जो सौर ऊर्जा के लिए सरकार की एजेंसी है उसके द्वारा अलग अलग किलोवाट के लिए जो टेंडर जारी किए गए। उसमें उन्होंने लिखा कि वह ₹3.27 प्रति यूनिट की दर से ऊर्जा निगम को बिजली विक्रय करेंगे। उनके साथ जो प्रतियोगी थे उन्होंने ₹4 प्रति यूनिट से अधिक दर का टेंडर भरा। दर कम होने के कारण उन्हें आसानी से टेंडर मिल गया।
उन्होंने धारवाली जगह में अपनी निजी पट्टे की भूमि पर जो सौर ऊर्जा प्लांट स्थापित किया है वह 500 किलो वाट क्षमता का है। वे सरकार अर्थात ऊर्जा निगम को बिजली विक्रय करने लगे हैं। प्लांट की कुल लागत करीब ढाई करोड़ रुपए है। उन्हें यह काम कैसे मिला तो उन्होंने बताया कि उरेडा जो सौर ऊर्जा के लिए सरकार की एजेंसी है उसके द्वारा अलग अलग किलोवाट के लिए जो टेंडर जारी किए गए। उसमें उन्होंने लिखा कि वह ₹3.27 प्रति यूनिट की दर से ऊर्जा निगम को बिजली विक्रय करेंगे। उनके साथ जो प्रतियोगी थे उन्होंने ₹4 प्रति यूनिट से अधिक टेंडर का टेंडर भरा। दर कम होने के कारण उन्हें आसानी से टेंडर मिल गया।
हालांकि उनकी फर्म टेंडर के सभी मानकों को आसानी से पूर्ण करती थी। उसके बाद उन्होंने परियोजना के लिए बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया तो उन्हें ऋण भी आसानी से मिल गया। उन्होंने जो प्लांट स्थापित किया है उसमें सौर ऊर्जा की करीब 1500 प्लेट लगी है।जिसमें 8 से अधिक बड़े-बड़े इनवर्टर काम कर रहे हैं और जो विद्युत मीटर है उसकी लागत एक लाख से अधिक है। जो मशीनें लगी हैं उसका पूरा सिस्टम ऑटोमेटिक है। यदि प्लांट में कोई आदमी ना भी हो तो सिस्टम ऑटोमेटिक काम करता है। उनसे जब कहा गया कि इस प्रोजेक्ट को लगाने में उन्हें कोई परेशानी तो नहीं हुई, तो उन्होंने कहा कि मुझे इस विषय का नॉलेज था इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं आई।
उन्होंने बताया कि अब वे वहां पर पवन चक्की यानि पवन ऊर्जा का संयंत्र भी लगाना चाहते हैं। धारवाली जगह पर होने के कारण वहां हवा अधिक चलती है और दिन- रात चलती है। इसलिए पवन चक्की से बिजली उत्पादन की संभावनाएं भी यहां बरकरार है। भगवान सिंह पुंडीर जी से सीखने वाली बात यह है कि उन्होंने जिस जगह पर प्लांट स्थापित किया है वह उनकी पट्टे की भूमि है और पट्टे की भूमि पर अब बिजली का उत्पादन हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन के कारण स्थितियां बदल गई हैं। इसलिए उन्होंने सोचा कि अब कुछ अलग किया जाए। खास बात यह है कि चंबा मसूरी फल पट्टी के जितने भी पट्टा धारक हैं उनके लिए सरकार ने एक नया शासनादेश भी पिछले वर्ष जारी किया था जिसमें कहा गया है कि पट्टे की भूमि पर सब्जी उत्पादन,फलोत्पादन के अलावा जड़ी-बूटी उत्पादन और वैकल्पिक ऊर्जा उद्योग भी स्थापित किए जा सकते हैं। इसलिए उनके इस प्रोजेक्ट के पूरी तरह सफल होने की आसार हैं।
उन्होंने जो प्लांट लगाया है उसमें जो सौर ऊर्जा की प्लेट लगी हुई हैं उसके नीचे जो खाली भूमि है वहां पर वह एलोवेरा व अन्य औषधीय पौधों का रोपण भी कर रहे हैं ताकि प्लेट के नीचे की जमीन में जो नमी रहेगी उसमें उगने वाले औषधीय पौधे भी आय का स्रोत हो सकते हैं।
अभी उत्तराखंड में कुछ चुनिंदा जगहों पर ही इतने बड़े प्लांट लगाए गए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि उरेडा ऊर्जा परियोजनाओं को प्रोत्साहित कर रहा है। उर्जा अर्थात बिजली की आपूर्ति केवल जल विद्युत परियोजनाओं से ही नहीं हो सकती है सौर ऊर्जा भी उसका एक बेहतर विकल्प है।
जब बांध बनते हैं तो उसके लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है। बहुत कुछ विस्थापन करना पड़ता है लेकिन सौर ऊर्जा प्लांट से न तो प्रकृति को नुकसान होता है और न कहीं विस्थापन की नौबत आती है। इसमें सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जाती है। जो प्लांट इन्होंने लगाया है उस पर 30% की सब्सिडी है। कुछ पर 40% तक का अनुदान भी है। ढाई करोड़ का इनका जो संयंत्र स्थापित किया गया है उससे हर माह दो से ढाई लाख रुपए की आय होगी। क्योंकि यह प्लांट करोड़ों में स्थापित किया गया है। इसलिए गांव के गरीब और बेरोजगार किस तरीके से सौर ऊर्जा प्लांट से लाभ ले सके इसके लिए सरकार को विशेष कार्य योजना तैयार करनी होगी।