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स्वैच्छिक चकबन्दी के नाम पर अब तक की सरकारों ने किसानों को पकड़ाया झुनझुना

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गढ़ निनाद न्यूज़*15 जुलाई 2020

देहरादून: उत्तराखण्ड बने बीस साल हो गये हैं,लेकिन उत्तराखण्ड में कास्तकारों व किसानों को आज तक की सभी राज्य सरकारों द्वारा स्वैच्छिक चकबन्दी का झुनझुना पकडाया जा रहा है। केवल राज्य के नेता, हमारे चयनित प्रतिनिधि मंचो से भाषण के सिवाय कुछ नहीं । कोई साफ नीति क्यों नही? जिसमें सरकार प्रशासन के अधिकारियों में इच्छा शक्ति का अभाव स्पष्ट नजर आता है।

कोई भी योजना तभी सफल होती है जब उस पर धरातलीय काम हो, गांव के कास्तकार के साथ मिलकर नीति व कार्यक्रम बनें । सभी को मालूम है पहाडो में छीतरी, व बिखरी खेती ही पलायन का मुख्य कारण है,जिस पर समय, मेहनत, पैसा बरबाद करने पर अन्ततः लाभ जीरो ही मिलता है। जिस कारण अपने व परिवार के भरण पोषण की चिन्ता लिये युवा रोजगार की तलाश में घर गांव से बाहर निकलते चले गये और गांव खाली होते गये।

यही कारण है कि पूरे उत्तराखण्ड में 1800 से अधिक गांव भूताह घोषित किये गये हैं,जहां कोई रहता ही नहीं। जिस कारण पहाडो में विधान सभा क्षेत्र भी कम हो गये। जिस कारण पहाड़ी राज्य के औचित्य पर यदाकदा प्रश्न भी लगाये जाते रहे हैं।

ऐसे समय में जब वैश्विक महामारी के कारण छोटे मोटे रोजगार के लिये बाहर गये युवा फैक्टरियां, होटल आदि बन्द होने के कारण सरकारी आंकडो के अनुसार दो ढाई लाख लोग उत्तराखण्ड लौटे हैं, तो अब उनके सामने रोजगार की समस्या पैदा होने लगी है। तो कुछ मनरेगा, कुछ अन्य छोटा मोटा व्यसाय शुरू किया है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। 

सभी को मालूमहै कि कृषि पहाड की रीढ है, तो जरूरी है कि उसे और अधिक कारगर कैसे बनाया जा सके। आप हमको मालूम है पुराने समय से हमारे बाप, दादाओं ने गांव मे आपसी सहमति से संटवारा कर खेती की चकबन्दी की शुरूवात की थी और उस पर खेती किसानी शुरू की थी।

देश स्वतंत्र हुये 73  बर्ष हो गये,लेकिन राजस्व अभिलेखो में सुधार नहीं हो पाया। जब भी कभी किसी गांव क्षेत्र में सरकार की छोटी से लेकर बडी बडी योजनायें बनी या बनती हैं,तो कास्तकार को जमीन का मुआवजा दिये जाते समय लाभ उस व्यक्ति को मिलता जिसके नाम से खेती है,और जो पीढियो से उस पर खेती कर रहा है वह बंचित रह जाता है। कारण स्पष्ट है। जब आपसी संटवारा हुआ तो राजस्व विभाग को चाहिये था,संटवारा करने वाले दोनो कास्तकारो का सहमति पत्र प्राप्त कर कृषि भूमि भी एक दूसरे के नाम से अभिलेखों में चढ जाती,तो वह मुआवजा के लाभ के साथ अन्य सुविधाओ से वंचित नहीं होता। इस तरह के कई प्रकरण टिहरी बांध निर्माण व आलवेदर रोड के निर्माण के दौरान सामने आये।

मेरा सरकार व प्रशासनिक अधिकारियो को सुझाव है कि उपरोक्त समस्याओं के निदान व स्वैच्छिक चकबन्दी के प्रोत्साहन हेतु प्रत्येक गांव गांव में राजस्व अभिलेखो के सुधारीकरण हेतु धारा-161 के कैम्प लगाये जायं और पहली प्राथमिकता में पूर्व में संटवारा किये खेतो का सहमति पत्र के आधार पर राजस्व अभिलेखो में अंकित किया जाय,ताकि कास्तकारो को सरकारी सुविधाओ के साथ बैंक ऋण,लेने भी सुविधा हो और खेती की देखरेख, उत्पादन करने में सुविधा होगी। इसको देख कर गांव के अन्य लोग भी जुडेगें, गांव स्वतः ही सम्पन्नता की ओर बढ़ेंगे, पलायन रूकेगा, लोगो को खेती से जुडने के साथ साथ अन्य लघु उद्योगो के अवसर भी बढेगे, गांव, क्षेत्र, जनपद, राज्य सम्पन्न होगा व बेरोजगारी भी दूर होगी।

बहरहाल सरकार को चकबंदी को लेकर गंभीर होना ही पड़ेगा। इसके लिए पूरे होमवर्क के साथ चकबंदी को धरातल पर उतारना होगा। उन व्यावहारिक दिक्कतों को पहले ही दूर करा लिया जाना चाहिए, जो इसकी राह में रोड़ा बन सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार पूरी तैयारी के साथ राज्य में चकबंदी लागू करेगी।

एस.एम. बिजल्वाण

रिटा.अ0 जि0 सूचनाधिकारी,टि.ग.


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Govind Pundir

*** संक्षिप्त परिचय / बायोडाटा *** नाम: गोविन्द सिंह पुण्डीर संपादक: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल टिहरी। उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार। पत्रकारिता अनुभव: सन 1978 से सतत सक्रिय पत्रकारिता। विशेषता: जनसमस्याओं, सामाजिक सरोकारों, संस्कृति एवं विकास संबंधी मुद्दों पर गहन लेखन और रिपोर्टिंग। योगदान: चार दशकों से अधिक समय से प्रिंट व सोशल मीडिया में निरंतर लेखन एवं संपादन वर्तमान कार्य: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से डिजिटल पत्रकारिता को नई दिशा प्रदान करना।

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