15 अगस्त: उत्तराखंड के लिए दोहरी खुशी—का शेष भाग
विक्रम बिष्ट
20 अगस्त 1981, तब भाजपा नीत सरकार थी। इसलिए उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक में उत्तराखंड के साथ उत्तरांचल जोड़ दिया गया। भाजपा को उत्तराखंड में अलगाववाद की बू आती थी। यही महत्वपूर्ण बदलाव था। यह बहुत कुछ बदला गया, नतीजे बता ही रहे हैं।
देवेगौडा और इंद्र कुमार गुजराल सरकार में माकपा के इन्द्र्जीत गुप्त केंद्रीय गृहमंत्री थे। मूल विधेयक पर उनकी स्पष्ट छाप रही होगी। भाकपा पहली राष्ट्रीय पार्टी है जिसने 1952 से ही उत्तर प्रदेश के पांच( 60 में आठ) पहाड़ी जिलों के लिए प्रथम प्रशासनिक व्यवस्था की अलख जगाई थी। 1960 में टिहरी, पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों का विभाजन कर क्रमश: उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ जिले बनाए गए थे और इनको उत्तराखंड नाम दिया गया था। अविभाजित भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव पूरन चंद्र जोशी उत्तराखंड के लिए जीवन पर्यंत संघर्षरत रहे थे। अल्मोड़ा में 1907 में जन्मे पीसी जोशी को 1929 में अंग्रेजों ने जेल भेज दिया था। महज 29 साल की उम्र में वह माकपा के महासचिव चुने गए थे। पहाड़ अपने इस लाल को कितना याद करता है?
याद करता तो उनके सपनों का स्वायत उत्तराखंड प्रदेश देश के सबसे खुशहाल राज्य में शुमार हो गया होता। तराई के सोना उगलने वाली जमीन पर पहाड़ के रणबांकुरे सैनिकों के वंशजों, मूल निवासी थारु और बोक्साओं का हक होता। उत्तराखंड भू-दस्यों से मुक्त होता।
पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली भी माकपा से जुड़े थे और उत्तराखंड राज्य के प्रबल पक्षधर थे। वह दुधातोली के समीप उत्तराखंड विश्वविद्यालय की स्थापना करवाना चाहते थे। कहा जाता है कि उन्होंने नेहरू जी को यहां देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का सुझाव दिया था।
देवेगौड़ा ठेठ दक्षिण के थे उनको अचानक उत्तराखंड बनाने की कैसे सूझी? जवाब है गृहमंत्री गुप्त और पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह! यह लंबी कहानी है। बेशक देवेगौड़ा और गुजराल सरकार में राज्य मंत्री रहे सतपाल महाराज के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। महाराज इंद्रमणि बडोनी के नेतृत्व में गठित उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के सह संरक्षक थे। हालांकि उनकी पार्टी तिवारी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड राज्य निर्माण के घोर विरोधी थे।
केंद्र में राजनीतिक अस्थिरता के चलते मामला लटकता रहा। भाजपा को उत्तरांचल के साथ वनांचल और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के वायदे को भी पूरा करना था। वाजपेई जी की तीसरी सरकार ने इसे पूरा किया। 1 अगस्त 2000 को लोकसभा और राज्यसभा ने उत्तराखंड विधेयक पारित कर दिया । 28 अगस्त को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद विधेयक अधिनियम बन गया।