बुधू- दिवाकर भट्ट का खटराग
उत्तराखंड क्रांति दल के फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट को कभी-कभी याद आ जाता है कि स्थाई निवास की व्यवस्था मूल निवासियों के लिए खतरा है। फील्ड मार्शल का फील्ड तो कब का बंजर हो गया है। खरपतवार कुछ उगाया गया है जो हरियाली की बची खुची आशाओं पर तेजाब छिड़कने का काम करता है।
मूल निवास बनाम स्थाई निवास उत्तराखंड के भविष्य के सबसे बड़े संवेदनशील और बड़े मुद्दों में से एक है। भट्ट और उनकी टीम बड़बड़ाती रहती है कि यह राष्ट्रीय दलों का षड्यंत्र है। राष्ट्रीय दलों का दिल भले छोटा हो खाल गैंडे जैसी होती है। भाले बरछों से असर नहीं पड़ता, जनता नाराज होती है तो भी चिंता नहीं। पता है पांच साल हमारे पांच साल तुम्हारे। हीं हीं हीं–।
उनको पता है कि फील्ड मार्शल और उनके वीर सैनिकों की बड़बड़ाहट पर जनता ध्यान नहीं देती है। सो इनको महत्व देकर अपना वक्त क्यों बर्बाद करें।
जो सुधिजन चिंतित हैं वे भट्ट और उनके उक्रांद को गाली दे मन मसोस कर शांत हो जाते हैं। दिवाकर भट्ट भाजपा की सरकार में राजस्व सहित बड़े विभागों के मंत्री थे। लोग याद दिलाते हैं और पूछते हैं कि तब स्थाई निवास की व्यवस्था समाप्त क्यों नहीं करवाई। बुधू को उक्रांद से पूरी सहानुभूति है खासकर उन कार्यकर्ताओं से जिन्होंने निस्वार्थ भाव से उत्तराखंड राज्य के लिए अपना जीवन होम कर दिया। या तो वे जीवित नहीं है जीवित हैं तो अपने सपनों के उत्तराखंड की बर्बादी पर छटपटा रहे हैं।
बुधू करोना को ढूंढते-ढूंढते दिवाकर भट्ट के फील्ड में रंगे कटे-फटे तंबुओं में उलझ गया। एक में त्रिवेंद्र पंवार अपने दो साथियों के साथ खर्राटे भर रहे थे। बीच-बीच में बड़बड़ा रहे थे निकाल दिया। इसको भी, उसको भी पार्टी से निकाल दिया । सबको निकाल दूंगा। पार्टी को बचाना है तभी उत्तराखंड बचेगा। दोनों साथी तालियां बजाते हैं। हैरत है नींद में भी तालियां। ऐसी वफादारी देखी है कहीं और?
एक तंबू में काशी सिंह ऐरी। नींद नहीं आ रही है। अब सत्ता सपनों में भी नहीं आती है। अगल बगल से गहरी सांसे आ रही हैं, तिवाड़ी जी के दिनों में कितना मजा था।
एक बड़ा सा टेंट है। इसके भीतर किस्म-किस्म के बिस्तरों पर अलग-अलग रंग-ढंग के लोग लेटे, बैठे और कुछ लटके हुए हैं। कई तरह की खुशबू तैर रही है। किनारे एक निराश सा आदमी बैठा था, बेबस। पता चला वह उक्रांद का एक सेवक है। विपिन त्रिपाठी का चेला रहा है। उसके पास कागजों के चिथड़े थे। बताया की उक्रांद का एजेंडा है। नशामुक्त उत्तराखंड के मुद्दे पर चर्चा हो रही थी। ये सब हर हाल में उत्तराखंड को नशामुक्त बनाना चाहते थे। एक से एक बढ़कर पूरी ताकत लगाकर।
आखिरी टेंट में दिवाकर भट्ट अपने भक्त जनों के साथ बैठे थे। संगठन को मजबूत करने के लिए किस जोकर को कहां फिट करना है यह खेल चल रहा था। वे अपने-अपने ढंग से रिझाने की कोशिशें कर रहे थे। ज्यादातर आसपास के शहरों के थे। भट्ट गुनगुना रहे हैं, आ रहा हूं उत्तराखंड मैं आ रहा हूं।
बुधू की बात मन में न लेना। बुधू बस यों ही बक देता है। मैं चला.. कोरोना ढूंढने..।
न आपका, न किसी का बुधू।