कथा: दशमोत्तर छात्रवृत्ति घोटाला (भाग-15)
उम्मीद है जीत सच की ही होगी
विक्रम बिष्ट
छात्रवृत्ति घोटाला शैतान की आंत की तरह कहां कहां तक पसरा है इसका पूरा अंदाजा शायद ही किसी को अभी हो। एसआईटी जांच जारी है। उम्मीद है कि सच्चाई और न्याय की ही जीत होगी।
उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर हम दशमोत्तर छात्रवृत्ति योजना की ऑनलाइन प्रक्रिया की चर्चा कर चुके हैं। इसका पालन जिम्मेदार संस्थाओं और अधिकारियों ने किस तरह किया है आसानी से समझा जा सकता है। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को शासन स्तर पर किस तरह कागज की फुटबॉल बनाकर नाली में फेंक दिया जाता है। समाज कल्याण विभाग के दो अनुभागों के 18 अगस्त 2020 और 26 अगस्त के पत्रों से हम जान ही चुके हैं। निचले स्तर पर इस अधिनियम का पालन करवाने का नैतिक अधिकार शासन के पास कहां से बचता है?
हमारे मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं। बेशक भ्रष्टाचार के कुछ मामलों का खुलासा हुआ है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की अपनी छवि ईमानदार व्यक्ति की है। यही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है। लेकिन सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति के नीचे चूहा कुतरन जारी रहे तो लोक कल्याणकारी नीतियों का हश्र क्या होगा?
बताया जाता है कि शासन के ही एक वरिष्ठ अधिकारियों की पकड़ में दो ढाई वर्ष पहले छात्रवृत्ति में अनियमितताओं की कुछ घटनाएं आ गई थीं। 2018 में जांच के लिए एसआईटी का गठन हुआ। इसके दायरे में पहले देहरादून, हरिद्वार जिलों के शिक्षण संस्थान थे। नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश के बाद पूरा राज्य इस जांच के दायरे में आ गया। पुलिस के पास आम और खास लोगों की जान माल की सुरक्षा, गली मोहल्लों के लुच्चे, लफंगे से लेकर छोटे बड़े अपराधों की रोकथाम, जांच-धरपकड़ सहित कई जिम्मेदारियां हैं । सड़क और प्राकृतिक दुर्घटनाओं में बचाव राहत की पहली जिम्मेदारी भी हमारी पुलिस पर है। कोरोना महामारी की लड़ाई में स्वास्थ्य, पुलिस और सफाई कर्मी सबसे आगे मोर्चे पर डटे हैं। पुलिस से इन कामों के साथ शातिर आर्थिक चोरों को पकड़ने की जिम्मेदारी डालना क्या उचित है?
जारी…( भाग-16)