कथा: दशमोत्तर छात्रवृत्ति घोटाला (भाग-16)
फिर भी लोकपाल जरूर नहीं
विक्रम बिष्ट
यूकेडी समर्थित भाजपा की खंडूरी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त लोकपाल के गठन का रास्ता तैयार किया था। यह स्वाभाविक था कि विजय बहुगुणा की कांग्रेस सरकार ने वह प्रक्रिया उलट दी थी। क्या यह सिर्फ संयोग है कि छात्रवृत्ति घोटालों का रचनाकाल उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार का कार्यकाल ही है। आखिर दिल्ली से कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को उखाड़ने की सशक्त भूमिका सशक्त लोकपाल की अन्ना हजारे जिद ने ही तैयार की थी। व्यवस्था को भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना जिद नहीं वेष बदलकर मौके से फरार होने वाले बाबाओं की ढाल चाहिए होती है।
सहज यह कल्पना की जा सकती है कि अन्ना हजारे प्रेरित सशक्त लोकपाल तब उत्तराखंड में गठित हो गया होता तो उपरोक्त मामले कहां होते? सशक्त लोकपाल का अस्तित्व ही भ्रष्टाचारियों को डराने के लिए काफी है। उसका प्रशिक्षित दक्ष कार्यदल भ्रष्टाचार की जड़ों तक कम समय कम खर्च में पहुंचकर लोकहित और न्याय का कारगर उपाय हो सकता है।
मौजूदा सरकार इतिहास रचने का कार्य करेगी, चुनावी वर्ष में ही सही? विपक्ष से कोई उम्मीद नहीं है। रही बात यूकेडी की तो उससे सजग चौकीदार की भूमिका की उम्मीद क्षीण हो रही है। नींद या नशे की बड़बड़ाहट से कौन डरता है?