रैणी: सवाल कल भी वही, आज भी वही
विक्रम बिष्ट।
गढ़ निनाद समाचार* 8 फरवरी 2021
नई टिहरी। पता चला है कि हमारे भाग्य विधाताओं को स्मरण हो आया है कि एक ठेठ पहाड़ी गांव, रैणी लगभग छयालीस साल पहले गौरा देवी के नेतृत्व में रेणी की 27 अनपढ भवानियों ने चमत्कारिक विकास के उस रथ को रोक दिया था, आज जो कहर बन बरपा है। उनके आंदोलन के आगे तत्कालीन सरकार को झुकना पड़ा था। सरकार बैकफुट पर आ गयी और निर्णय वापस लेना पड़ा था।
सवाल तब भी वही थे जो आज हैं। 1974 के मार्च में रैणी जो तब चिपको आंदोलन के लिए विश्व में चर्चा में आया था, अब एक बार फिर 7 फरवरी 2021 को आयी त्रासदी से चर्चा में है।
*इस दुखद समय में यह सबसे कठोर सवाल यह है कि बिजली परियोजना की शुरुआत से लेकर कल तक की पूरी जानकारी सार्वजनिक की जाए।
पहले दिल्ली और लखनऊ में और अब देहरादून में बैठकर। योजनाओं की कपाल क्रिया का खाका कफनखोर तैयार करते हैं। भुगतना आम जनता को होता है।1974में रेणी के जंगल काटने का ठेका लखनऊ में दिया गया था। जबकि ग्रामीणों से उनके हक छीने जाने रहे थे। जैसे अंग्रेजों और टिहरी के राजाओं द्वारा छीने जाते थे। यह बात अप्रासंगिक नहीं है। नीयत और नीति का है। वरना त्रासदी इतनी बड़ी नहीं होती।*