बुधू * दे दनादन उत्तराखंड *
गढ़ निनाद समाचार।
1 मार्च को बुधू को निजी कारणवश झुनझुना राजधानी गैरसैंण में जाने का अवसर नहीं मिला। इसलिए ठीक से बता नहीं सकता कि पुलिस लाठीचार्ज की नौबत कैसे आई । जो हुआ बहुत बुरा हुआ। आपस में ही लड़ पड़े उत्तराखंडी। घाव वर्दी वालों के हों या बिना वर्दी वालों के। दर्द तो उत्तराखंड का है।
और शैतान मुस्कुरा रहा है। वह उस दिन गैरसैंण में सशरीर उपस्थित था। शैतान की आत्मा नहीं प्रेतात्मा होती है। वह छाया रूप में गैरसैंण और देहरादून में दिखती है। उसका असली घर उससे भी दूर कहीं है। उसके डर से, उसकी ऐय्याशी में खलल नहीं पड़े, इसलिए गैरसैंण को सम्पूर्ण वास्तविक राजधानी बनने नहीं दिया जा रहा है।
घाट वालों की मांग क्या है? शंकरी सड़क को चौड़ा करने की। महीनों से आंदोलन कर रहे हैं। यह नौबत क्यों आयी? देहरादून को कम सुनायी देती है पहाड़ की पुकार।!
अब शैतान खुश हुआ। बता सकेगा गैरसैंण बड़ी खतरनाक जगह है। वहां पत्थरबाज हैं। अभी तो साल में पांच-सात दिन सैर सपाटे के लिए वहां जाना होता है। सौ-डेढ़ सौ दिन रहना पड़ा तो? एक तो वहां की हवा खराब ,मौसम खराब और अब तो साबित हो गया है कि वहां पत्थरबाज भी हैं।
यूं शैतान का कोई पत्थरबाज क्या बिगाड़ सकता है।? यदि घाट वालों की बात पहले सुन ली गयी होती तो शैतान को उत्तराखंड को बदनाम करने का मौका नहीं मिलता। शैतान का दिल भी नहीं होता। वह उत्तराखंड राज्य चाहता भी नहीं था। लेकिन बन ही गया तो लूटने, खसोटने , बर्बाद करने का मौका चूक भी नहीं रहा है। इसलिए बिना कहे ठहाके लगा रहा है, लो उत्तराखंडियों दनादन। समझ जाएं तो अच्छा है। ना समझें तो आपकी चुनी सरकार शैतान की छांव कृपा में रहेगी।
नाराज मत होना पिछले बुधबार को तब्ययत थो…डा.. नासाज़ थी।
होली की अग्रिम शुभकामनाएं।
न आपका न किसी का, बुधू।