उत्तराखंड राज्य आंदोलन, भुलाये गये नींव के पत्थर
गढ़ निनाद समाचार* 13 मार्च 2021। उत्तराखंड आंदोलन में लाखों लोगों की भागीदारी रही है। कुछ नामी गिरामी लोग हैं। अव्यावहारिक नीति और प्रक्रियागत दोष के बावजूद बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण भी किया गया है। निर्णय लेने वालों की नियत के पीछे चाहे जो रहा हो।
हम ज्यादातर उन लोगों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं जिनका योगदान वास्तव में बड़ा है। उन घटनाओं का भी जो चर्चाओं में या आम नजरों से ओझल रही हैं। यदि आप या आपके पास ऐसे लोगों की स्मृतियां हैं तो “गढ़ निनाद” के माध्यम से साझा कर सकते हैं। यह श्रृंखला राज्य आंदोलन पर प्रस्तावित पुस्तक के अंश हैं। –संपादक।
विक्रम बिष्ट* परेन्द्र सकलानी टिहरी में उक्रांद से सबसे पहले जुड़ने वाले उन छात्रों में से थे, जिन्होंने राज्य आंदोलन में पूरे समर्पण के साथ योगदान दिया है। सक्रिय राजनीति छोड़ी है, लेकिन उक्रांद का दामन नहीं छोड़ा। दल के नेताओं की नीति-रीति से नाराज हैं। सक्रिय राजनीति में नहीं हैं, सामाजिक कार्यों से जुड़े हैं। विक्रम नेगी (विक्की) सुरेंद्र रावत, लोकेंद्र जोशी आदि छात्र नेता 1986-87 में आंदोलन में सक्रिय हुए थे।
10 नवंबर 1986 को नैनीताल में उक्रांद की बड़ी रैली हुई थी। टिहरी शहर से परेन्द्र और एडवोकेट गोविंद सिंह कलूडा भी रैली में शामिल हुए थे । पार्टी के बड़े मंच से भाषण का यह पहला अवसर था। जसवंत सिंह बिष्ट, काशी सिंह ऐरी, विपिन त्रिपाठी, डॉ नारायण सिंह जंतवाल, नित्यानंद भट्ट से पहला साक्षात्कार।
परेन्द्र सकलानी ने 1987-88 में टिहरी परिसर छात्रसंघ के कोषाध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था। लेकिन उक्रांद की छात्र शाखा इस पद को लेकर दो भागों में बंट गई। महासचिव और सह सचिव पर यूएसएफ बैनर से क्रमशः दिनेश व्यास और विक्रम नेगी जीते थे। विक्रम नेगी बाद के कई वर्षों तक उक्रांद के जिलाध्यक्ष रहे। परेन्द्र उत्तराखंड जन परिषद के संस्थापक सदस्य रहे हैं। राज्य आंदोलन में हिमालयन कार रैली के विरोध से लेकर रेल रोको आंदोलन में भी सक्रिय रहे। बेशक नारायण, हरीश कृपा वाली आंदोलनकारियों की सूची में उनका नाम नहीं है। ….जारी।