Ad Image

भीषण कोरोना काल और ऑक्सीजन की कमी!

भीषण कोरोना काल और ऑक्सीजन की कमी!
Please click to share News

गोविन्द पुंडीर

गढ़ निनाद समाचार।

नई टिहरी, 22 अप्रैल 2021  देशभर में कोरोना की दूसरी लहर तेजी के साथ लोगों को संक्रमित कर रही है। देश एक बार फिर लॉक डाउन की ओर बढ़ रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि लॉक डाउन बहुत ही गंभीर परिस्थितियों में ही किया जा सकता है। कोरोना की इस दूसरी लहर में जो सबसे बड़ी समस्या आ खड़ी हो रही है वह है ऑक्सीजन की कमी। 

प्रधानमंत्री जी ने हाल में मुख्यमंत्रियों से राज्य की स्थिति पर चर्चा की तो लगभग 12 राज्यों में ऑक्सीजन की कमी की बात सामने आई। कई राज्यों ने केंद्र सरकार पर पर्याप्त ऑक्सीजन न देने का आरोप लगाया। कोर्ट ने भी फटकार लगाई। 

सवाल यह है कि एक तो कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों को अस्पताल में बेड नहीं मिल पा रहे हैं। अगर बेड मिल भी रहे हैं तो उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है। बढ़ते दबाव के बीच ऑक्सीजन बनाने वाली कंपनियों ने उत्पादन बढ़ाना शुरू कर दिया है। भारत में एक दो नहीं बल्कि कई ऐसी कंपनियां हैं, जो लोगों को जिंदगी देने वाली ऑक्सीजन बनाती हैं। आइनॉक्स एयर प्रोडक्ट्स लिमिटेड,एलेनबेरी इंडस्ट्रियल गैसेस लिमिटेड, रेफेक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड, नेशनल ऑक्सीजन लिमिटेड, भगवती ऑक्सीजन लिमिटेड, गगन गैसेज लिमिटेड, लिंडे इंडिया लिमिटेड आदि प्रमुख हैं।

ऑक्सीजन महज मरीजों की जान ही नहीं बचाती है बल्कि स्टील, पेट्रोलियम जैसे कई उद्योगों में भी इसका इस्तेमाल होता है। ऑक्सीजन को लेकर इससे पहले लोग ज्यादा जागरूक नहीं थे मगर कोरोना की दूसरी लहर के बाद से जब अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी होने लगी और बिना ऑक्सीजन मरीज़ों की जान जाने लगी तो सरकारें हरकत में आई। आरोप प्रत्यारोप जा दौर, राजनीति सब शुरू होने लगी है। इस बीच की अस्पतालों में बिना ऑक्सीजन के जब मौते होने लगी तो कोर्ट को सख्ती बरतनी पड़ी और अस्पतालों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए कहा गया।

ऑक्सीजन कैसे बनती है ,सिलेंडर के अंदर ऑक्सीजन कहां से आती है इस पर थोड़ा नजर डालते हैं । गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रोसेस के जरिए ऑक्सीजन बनती है। इस प्रक्रिया में हवा को फिल्टर किया जाता है, ऐसा करने से धूल-मिट्टी इससे अलग हो जाती है और इसके बाद कई चरणों में हवा को कंप्रेस यानी उस पर भारी दबाव डाला जाता है। कंप्रेस हो चुकी हवा को मॉलिक्यूलर छलनी एडजॉर्बर से ट्रीट किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि पानी के कण, कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन इससे अलग हो जाएं। 

इस प्रक्रिया के पूरी हो जाने के बाद कंप्रेस हो चुकी हवा डिस्टिलेशन कॉलम में जाती है। यहां उसे पहले इसे ठंडा करते हैं और उसके बाद 185 डिग्री सेंटीग्रेड पर इसे गर्म किया जाता है, जिससे इसे डिस्टिल्ड किया जाता है। यहां आपको बता दें कि डिस्टिल्ड एक प्रक्रिया है, जिसमें पानी को उबाला जाता है और उसकी भाप को कंडेंस करके जमा किया जाता है। इस प्रक्रिया को कई बार अलग-अलग स्टेज पर किया जाता है। इसमें ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और आर्गन जैसी गैसें अलग-अलग हो जाती हैं। इस प्रक्रिया के बाद ही लिक्विड ऑक्सीजन और गैस ऑक्सीजन मिलती है।

ऑक्सीजन जहां प्राणदायिनी है वहीं यह जान लेवा भी साबित हो सकती है। कल महाराष्ट्र के एक अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर क्लर्क होने से 22 मरीज़ों की मौत हो गई। कुछ की हालत अभी भी गम्भीर है। सूत्रों की माने तो टैंकर भरते समय उसके वॉल्व में खराबी आने से बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन गैस का रिसाव हो गया जिसके कारण अस्पताल में आधे घण्टे तक ऑक्सीजन जी सप्लाई ठप्प हो गई और चारों ओर धुंआ छा गया। कुदरत का कहर देखिए कि इस समय सबसे ज्यादा कोरोना के मरीज भी महाराष्ट्र में हैं। अन्य राज्यों की तरह  यहां भी ऑक्सीजन की भारी कमी है।


Please click to share News

Govind Pundir

Related News Stories