‘कोरोना के खिलाफ’

‘कोरोना के खिलाफ’
मैं नहीं चाहता कि दूँ अपनों को दुखभरी डरावनी खबरें इन दिनों मौतों की
मैं नहीं चाहता कि ढाता रहे कहर कोरोना दुनिया में ऐसे ही हर रोज
मैं यह भी नहीं चाहता कि पढूं हर रोज कोरोनाकाल में मरे आत्मीय लोगों की खबरें सोशल साइटों पर
ना ही चाहता कि कोरोना दस्तक दे सुकून भरे गाँवों में
चुनावी जनसभाओं व रैलियों के साथ
मैं नहीं चाहता कि इसी तरह से श्रद्धांजलि देता रहूँ कोरोनाकाल मे मरी पुण्यात्माओं को
मैं नहीं चाहता कि आप घरों के बाहर निकलें इन दिनों अपने जान की बाजी लगाकर
मैं नहीं चाहता कि अनाथ हो कोई बच्चा अपनी माँ या पिता को खोकर
बिछड़े न कोई जोड़ी ना ही बिछड़े कोई अपना इस भयावह समय मे प्रेमभरे इस जगत से
मैं नहीं चाहता कि कोई मरे हमारी धरती पर पानी, हवा, दवा व अनाजों के अभाव में
मैं चाहता हूँ कि जिंदा रहे सरहदों पर डटे रहने वाला हर जवान
खेतों में सोने उगाने वाला हर किसान
भगवान के रूप में खड़ा हर डॉक्टर
मैं चाहता हूँ कि जिंदा रहे हमारे तक हर सच्ची खबरों को पहुँचाने वाला निर्भीक पत्रकार
जिंदादिली कवि तथा इतिहास को सहेजने वाला हर कलमकार!
मैं चाहता हूँ कि ज़िंदा रहे अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने वाली हर ताकतें कौम में
मैं चाहता हूँ कि खुश रहे इस भयावह समय मे मानवता की सेवा में खड़ा हर नेकदिल इंसान
तोतली बोलियों वाला बच्चा व दुखियों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरने वाले लोग
मैं चाहता हूँ कि लड़े हर बंदा कोरोनारूपी इस भयंकर जंग से पूरी शक्ति व साहस के साथ
कि हम होंगें कामयाब एक दिन इस जंग के खिलाफ लड़कर
मैं चाहता हूँ कि आहिस्ता आहिस्ता खत्म हो जाये कोरोना का अस्तित्व पूरी सृष्टि से
जैसे खत्म हो जाता है पतझड़ बंसन्त के आने पर
छा जाए खुशियों की बहार पूरी सृष्टि में गमकते फूलों की भाँति
मैं चाहता हूँ कि कलयुग के बिना खत्म हुए हो युगबोध धरा पर सतयुग, द्वापर व त्रेता का
धार्मिक उन्मादों से मुक्त चलती रहे सृष्टि सदियों तक मंथर-मंथर गति से
जिये हर व्यक्ति खुद के साथ दूसरों के लिए भी इस धरा पर
जाति धर्म से मुक्त समस्त प्राणि व सम्पूर्ण मानवता के लिए।
मनकामना शुक्ल ‘पथिक’
काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी।