मौत का भय जीवन की रक्षा एवं बीमारी का भय स्वास्थ्य की रक्षा करता है – नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम हिमालय
नई टिहरी, गढ़ निनाद समाचार ब्यूरो। कोरोना काल में एकांतवास पर चल रहे नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने वर्चुअल प्रवचन करते हुए बताया कि एक अच्छी सुबह, एक अच्छी उम्मीद, सब अच्छा होगा ये तीनों सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने का सरल उपाय हैं ।
जीवन में थोड़ा सा भय ज़रूरी है। मौत का भय जीवन की रक्षा एवं बीमारी का भय स्वास्थ्य की रक्षा करता है जबकि गलती का भय सही राह दिखाता है एवं दुःख का भय नेकी के रास्ते बनाये रखता है । धन-दौलत सिर्फ जीवन जीने का ढंग बदल सकता है, दिमाग, नियत और किस्मत नहीं। जिस आदमी के पास एक चेहरा है, उस आदमी को तनाव नहीं होता है। तनाव चेहरों को बदलने से होता है। इसलिए जो बदला जा सके उसे बदलो, जो बदला ना जा सके उसे स्वीकारों, और जो स्वीकारा ना जा सके उससे दूर हो जाओ लेकिन स्वयं को खुश रखो ।
सफलता अकेले नहीं आती वह अपने साथ अभिमान को लेकर भी आती है और यही अभिमान हमारे दुखों का कारण बन जाता है। ऐसे ही असफलता भी अकेले नहीं आती, वह भी अपने साथ निराशा को लेकर आती है और निराशा प्रगति पथ में एक बड़ी बाधा उत्पन्न कर देती है। यद्यपि योग शब्द बहुत ही व्यापक है। तथापि दुख, कटुवचन और अपमान सहने की क्षमता का विकास तथा सुख, प्रशंसा और सम्मान पचाने की सामर्थ्य से बढ़कर गृहस्थ धर्म में कोई दूसरा योग नहीं है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि माना कि सर्दी बहुत ज्यादा है मगर सर्दी को कोसने से भला फायदा भी क्या होगा ? फायदा तो इसमें है कि हम गर्म कपड़े पहन लें इससे सर्दी का एहसास भी कम होगा। अकारण सर्दी को कोसने से भी बचेंगें। यह आपके जीवन को सुगम बनाने के लिए एक योग नहीं तो क्या है ?
अत: हर स्थिति का मुस्कुराकर सामना करने की क्षमता, किसी भी स्थिति को अच्छी या बुरी न कहकर समभाव में रहते हुए अपने कर्तव्य पथ पर लगातार आगे बढ़ना। यही तो गीता का योग है। किसी में कमियां खोद खोद कर निकालना आदत है और खूबियां खोजना सहूर है, ये तो इंसान पर निर्भर है कि उसे क्या पसंद है ।
–नृसिंह पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित स्वामी रसिक महाराज परमाध्यक्ष नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार उत्तराखंड