जीरो टॉलरेंस वाली मुर्गी के अंडे
विक्रम बिष्ट
बात तब की है जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश में था। प्रदेश के एक मंत्री जी शहर के दौरे पर आए थे। उनको विभागीय विकास कार्यों की समीक्षा करनी थी । मंत्री जी के स्वागत सत्कार की व्यवस्था देव भूमि के अनुकूल की गई थी। लजीज लंच में महज 30 मुर्गे मुर्गियां शामिल की गई थी।
मंत्री जी शहर में मात्र घन्टा भर रुके। विकास की लंच सहित गहन समीक्षा के बाद किसी दूसरे जिले की भाग्य रेखा नापने निकल गए ।
विकास की गाड़ी अपनी पटरी पर चलती रही जैसे कि उनके आने से पहले भी चल रही थी। तब चर्चाएं होती थी कि इस वर्ष केंद्र ने उत्तर प्रदेश सरकार को पर्वतीय विकास के लिए दी जाने वाली धनराशि में इतने करोड़ रूपयों की बढ़ोतरी कर दी है। जितना भी रिस रिस कर पहाड़ चढ़ता था ,विकास के उतने खोदे-भरे गड्ढे बढ़ जाते थे । उत्तराखंड के मुख्य सचिव रहे रघुनंदन सिंह टोलिया जब यूपी में पर्वतीय विकास सचिव थे तो उन्होंने भूमि संरक्षण विभाग के लिए स्वीकृत साथ करोड़ रुपए रोक दिए थे । यह विभाग तब भूमि भक्षण विभाग के नाम से कुख्यात था।
अब तो विकास की गंगा बह रही है, सड़कों की जलेबी देकर यह पुष्ट होता है। ये अलग बात है कि अपनी दुर्दशा पर यह सड़कें आज भी बुकरा-बुकरी रोती रहती हैं । ज्यादातर तो सरे राह लुटपिट जाती हैं । करें भी क्या, बड़े पेट वालों की संख्या भी तो लगातार बढ़ रही है। चुनाव की देवी महा बलि से संतुष्ट नहीं होती।
तब की खास सूचना यह थी कि मंत्री जी ‘शाकाहारी’ थे ! एक पत्रकार ने अपने अनुभवी नेता मित्र से पूछा , एक शाकाहारी मंत्री एक लंच में 30 मुर्गे-मुर्गियां उदरस्थ करता है तो पूरी सरकार के लंच के लिए कितने ? नेताजी ने जवाब दिया कि जिन विद्यालयों में मेरी पूरी पढ़ाई हुई, उनमें गणित के अध्यापकों के पद हमेशा रिक्त रहे थे।
बहरहाल, अब देव भूमि की जीरो टॉलरेंस वाली सरकारें हैं। जीरो टॉलरेंस की नीति के अंडे सुनहरे हैं। संभालिए, बशर्ते आप पर…!