बुधू: उक्रांद की खुली नींद
भोले शंकर का प्रसाद सेवन कर लम्बी नींद से जागा उक्रांद। इस हफ्ते की बड़ी खबर । यह काशी का प्रताप है या विधानसभा चुनावों की उमड़ती काली घटा ।
उत्तराखण्ड राज्य के आदिकाल से ही उक्रांद पर काली घटाएं मंडराती रही हैं। पहले चुनाव में बाजी उसी कांग्रेस के हाथ लगी, जिसने कदम-कदम पर राज्य निर्माण में बाधाएं डालीं। जिसके कार्यकाल में उत्तराखंड पर बड़े जुल्म हुए। खटीमा, मसूरी और रामपुर तिराहा कांड पर मौन रही।
मुलायम-मायावती सरकार को अभयदान देती रही। उत्तराखंड आंदोलन के श्रेय का असली हकदार उक्रांद चार सीटों पर सिमट गया। ये चार कभी क्यों? क्रांतिकारी उक्रांदियों को वह भी पसंद नहीं आ आये।
सरकार की बजाए आपस में ही गुत्थम गुथी होती रही। नतीजा अगली बार तीन विधायक ही मिले। भाजपा को समर्थन की जरूरत थी, उक्रांद को सरकार में एक हिस्सा मिला। बड़े-बड़े मंत्रालया उक्रांद को पचे नहीं । दे दनादन सबको पार्टी से बाहर कर दिया।
बात भी सही थी। एक आंदोलनकारी पार्टी सरकार में कैसे रह सकती है। यह तो उत्तराखंड की जनता के साथ सरासर धोखा है। तीसरे चुनाव में सिर्फ एक विधायक। सिर्फ एक-1 और हिम्मत इतनी कि सरकार में मंत्री बन गया। निकल बाहर । आ हा कितना आनंद आया है। चौथे चुनाव में घुइयाँ छीलने का आनन्द मिला।
फील्ड मार्शल ने कमान संभाली फील्ड मार्शल का प्रोटोकॉल होता है। वह हमेशा मोर्चे पर डटा नहीं रहता। जरूरी है कि उसकी उसके जयकारे लगाने के सैल्यूट मारने वाले इर्द गिर्द रहें।
अब उक्रांद जाग ही गया है बल! देखा दै तब एं। बुधू की शुभकामनाएं।