धर्म शास्त्रों के अनुसार महिलाएं भी कर सकती है श्राद्ध – रसिक महाराज
रायवाला। नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार के परमाध्यक्ष स्वामी रसिक महाराज ने बताया कि पूर्वजों की स्मृति को बनाए रखने के लिए सोलह दिनों तक श्राद्ध पक्ष का आयोजन किया जाता है।
मान्यता है कि इन दिनों में पितृ- पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने परिजनों से श्राद्ध और तर्पण की आशा रखते हैं। परिजन भी पितरों को तृप्त करने के लिए शास्त्रोक्त क्रिया कर्म करते हैं। पितृ अपने परिजनों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। धर्म शास्त्रों में श्राद्ध कैसे किया जाए इसकी क्रियाविधि बताई गई है साथ यह भी बताया गया है कि कौन श्राद्ध कर सकता है।
संतानहीन का श्राद्ध
‘मनुस्मृति’ और ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में कहा गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो पुत्र हो, यदि पुत्र ना हो तो भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं। संतानहीन होने की दशा में भाई, भतीजे, भांजे या चाचा-ताऊ के परिवार के पुरुष सदस्य पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके विद्वान ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते हैं तो पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है।
स्त्री और श्राद्ध का अधिकार
अक्सर यह बात भी उठाई जाती है कि क्या कोई महिला श्राद्ध कर सकती है या महिला को श्राद्ध का अधिकार है। ‘धर्मसिन्धु’ ‘मनुस्मृति’ और ‘गरुड़ पुराण’ जैसे पौराणिक ग्रंथ महिलाओं को पिंडदान करने का अधिकार देते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार महिलाएं यज्ञ अनुष्ठान और व्रत आदि तो रख सकती हैं, लेकिन श्राद्ध का अधिकार उनको नहीं है।
विधवा महिला यदि संतानहीन है तो अपने पति के नाम से श्राद्ध का संकल्प रखकर ब्राह्मण या पुरोहित परिवार के पुरुष सदस्य से ही पिंडदान आदि का कर्मकांड करवा सकती है। इसी तरह जिन परिवारों में सिर्फ लड़कियां होती है उनमें दामाद, नाती को श्राद्ध का अधिकार है। साधु-संतों का श्राद्ध शिष्यगण कर सकते हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि परिवार का कौनसा सदस्य श्राद्धकर्म करने का अधिकार रखता है।
पुत्राभावे वधु कूर्यात भार्याभावे च सोदनः।
शिष्यो वा ब्राह्मणः सपिण्डो वा समाचरेत॥
ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृःपुत्रश्चः पौत्रके।
श्राध्यामात्रदिकम कार्य पु.त्रहीनेत खगः॥
अर्थात परिवार का बड़ा पुत्र या छोटे पुत्र के ना होने पर बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री भी शामिल है। अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा, भानजा, नाती, पोता आदि कोई भी यह कर सकता है। इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है।
इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्ध व तर्पण और तिलांजली देकर मोक्ष कामना कर सकती है।