उत्तराखंडियों को वनवासी घोषित करें-किशोर
नई टिहरी। वनाधिकार आंदोलन के संस्थापक व प्रणेता किशोर उपाध्याय ने जंगली जानवरों द्वारा जिस तरह लोगों का कत्ल किया जा रहा है और फसलों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है, दुःख और गंभीर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि वनाधिकार आंदोलन अब और अधिक प्रासंगिक हो गया है।
लगभग हर रोज़ प्रदेश के किसी न किसी कोने से जंगली जानवरों से लोगों को मारने की चिन्ता जनक खबर आ जाती है और सरकार सुनीन्द सो रही है, सरकार को लोगों की कोई चिंता नहीं है।
कल ही बाघ एक ढाई साल की बच्ची को खा गया है।
उपाध्याय ने मुख्यमंत्री और वन मंत्री को पत्र लिखा है और कहा है कि पीड़ित व प्रभावित परिवारों को लखीमपुर-खीरी में मारे गये किसानों को दिये जा रहे मुआवजे की तरह ही उत्तराखंड के जंगली जानवरों से प्रभावितों को क्षतिपूर्ति दी जाय।
प्रभावित परिवार को 50 लाख रुपये मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को योग्यतानुसार पक्की सरकारी नौकरी दी जाए।
ज्ञातव्य हो कि उपाध्याय लम्बे समय से राज्य में वनाधिकार कानून-2006 लागू करने, उत्तराखंडियों को Forest Dweller घोषित करने तथा उनके पुश्तैनी हक-हक़ूक़ व अधिकार बहाल करने हेतु आंदोलन कर रहे हैं।
आंदोलन की मांग है कि परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी देने, केंद्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण देने, बिजली पानी व रसोई गैस निशुल्क देने,जड़ी बूटियों पर स्थानीय समुदायों को अधिकार देने, जंगली जानवरों से जनहानि होने पर परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी तथा ₹ 25 लाख क्षति पूर्ति दी देने और फसल की हानि पर प्रतिनाली 5000 रुपये क्षतिपूर्ति देने की मांग की है।
इसके अलावा एक यूनिट आवास निर्माण के लिये लकड़ी, रेत-बजरी व पत्थर निशुल्क देने, उत्तराखंडियों को OBC घोषित किये जाने, भू-कानून बनाया जाए, जिसमें वन व अन्य भूमि भी शामिल करने की मांग की है।
उपाध्याय ने आशा व्यक्त की है कि विधानसभा चुनाव से पूर्व केंद्र व राज्य सरकार व्यापक जनहित है इन बिंदुओं को स्वीकार करेगी।