सदा सुखी रहना कृष्ण भक्त का लक्षण — डाक्टर कैलाश घिल्डियाल
असत्य की अपेक्षा सत्य की पर्णकुटिया का परिपातक बनना श्रेयस्कर – नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
रायवाला हरिद्वार। प्रतीत नगर डांडी कोठारी भवन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन भगवान कृष्ण के जन्म की कथा के बाद दिव्य झांकी निकाली गई। कथावाचक डॉक्टर कैलाश घिल्डियाल ने बताया कि सदा सुखी रहना कृष्ण भक्त का लक्षण है और भक्ति सच्ची है तो सुख की राह मे आने वाली बाधाएं खुद ब खुद दूर हो जाती हैं।
व्यासपीठ का माल्यार्पण करते हुए नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज एवं बालकृष्ण की झलक
भक्त श्रीकृष्ण को ही महत्व देता है तथा प्रभु विमुख मै मेरापन को सिरे से नकार देता है। उसका हृदय अखिल सृष्टि से जुड़ा रहता है।जो हृदय से टूटा है वह सबसे टूटा है।जो हृदय से जुड़ा है वह सबसे जुड़ा है। हृदय, ईश्वर है या हृदय में ईश्वर है।
ईश्वर:सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
यह योग्यता या सामर्थ्य जिसमे प्रकट हो समझना चाहिए वह लीला का जीव है।
इस अवसर पर भागवत कथा में आशीर्वाद देने पहुंचे नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि कृष्ण का जन्म अराजकता के क्षेत्र में हुआ था। यह एक ऐसा समय था जब उत्पीड़न बड़े पैमाने पर था, स्वतंत्रता से वंचित किया गया था, बुराई हर जगह थी, और जब उनके मामा राजा कंस द्वारा उनके जीवन के लिए खतरा था।
उन्होंने बताया कि जूठ के उद्यान के प्रवंचक यात्री बनने के बजाय सत्य की रखवाली या देख-भाल करने वाला माली बनने में जीवन की सार्थकता अधिक हैं। असत्य साम्राज्य का शहेंशाह बनने की अपेक्षा सत्य की पर्णकुटिया का परिपातक बनना अधिक श्रेयस्कर हैं।