आसान नहीं है श्रीमती मधुलिका रावत होना — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला के परमाध्यक्ष नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज नें सन्त समाज की तरफ से दिवंगत सीडीएस विपिन रावत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी धर्मपत्नी स्व मधुलिका रावत के त्याग और सहजता को नमन किया. उन्होंने बताया कि जनरल ने सर्वोच्च बलिदान दे दिया, हम सब जनरल के लिए गर्व और अकथ पीड़ा के भाव से भरे हुए हैं पर इन सबके बीच उस सिंहनी का जरूर स्मरण करना जो अपने पति के साथ अंत तक रही। जिसने सात वचनों का सम्यक निर्वहन किया। जिसने अपने पति का साथ रणक्षेत्र में भी दिया।
सीता से लेकर सारंध्रा की तरह पति की छाया बन चलने वाली श्रीमती मधुलिका रावत पर लिखते हाथ काँप रहे पर लिखना इसलिए कि जनरल विपिन रावत होने की शर्त केवल मधुलिका रावत होना है और मधुलिका रावत कोई कैसे बनता है जब वह सीता की तरह अपना राजमहल छोड़ कर पति के व्रत को अपना ध्येय बना ले। जनरल रावत देशसेवा के व्रत और फौज को इसलिए संभाल पाए क्योंकि मधुलिका रावत ने उन्हें संभाल रखा था।
एक क्षत्राणी का जीवन कैसे जिया जाता है मधुलिका रावत के जीवन से सीखा जा सकता है। उनके निर्णयों में दृढ़ता तो हृदय में करुणा का सागर भरा हुआ था। मधुलिका जी ने शहीदों की विधवाओं को परिवार का हिस्सा मानकर सदा उनके कल्याण के लिए काम करती रहीं। धर्म में उनकी निष्ठा अतुलनीय रही। तमाम चैरिटेबल कार्यों में उनकी सहभागिता बताती है कि शास्त्रों में क्यों कहा गया कि क्षत्रिय वही जो दूसरों की रक्षा करे।
सन्त रसिक महाराज ने कहा कि आखिरी पल जब उन्होंने एक दूसरे को देखा होगा तो शायद जनरल राम रूप हो गए होंगे जो सीता को भूमि में जाते हुए रोक न पाए पर सीता माता को तो लीला पूर्ण कर वैकुंठ में प्रभु की प्रतीक्षा करने पहले ही जाना था।
दुनिया में जितनी प्रेम की उत्कृष्ट कल्पनाएं हैं वह आखिर दम तक साथ देने की हैं, एक साथी के लिए इससे ज्यादा गर्व की बात और क्या हो सकती है। साथ क्या होता है और कैसे दिया जाता है, मधुलिका रावत एक उदाहरण बन गयीं हैं परिवार, समाज और आने वाली नस्लों के लिए।