भगवान शिव के इस मंदिर की होती है पूरी परिक्रमा, नाग नागिन करते हैं रक्षा, जल हो जाता है गायब
देवलसारी मंदिर से दीपक पुंडीर-
आज 1 मार्च 2022 को महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर टिहरी गढ़वाल जनपद के सभी शिवालयों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रही। श्रद्धालुओं ने तमाम शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना कर भोलेनाथ का जलाभिषेक कर आशीर्वाद लिया। देवलसारी मंदिर में पहुंची देव डोली का भी श्रद्धालुओं ने आशीर्वाद प्राप्त किया।
सुबह से ही सत्येश्वर महादेव मंदिर, कोटेश्वर महादेव मंदिर, खांड खाला के सिद्धेश्वर महादेव मंदिर , जसपुर के पौराणिक महादेव मंदिर समेत कई मंदिरों में श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना कर भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद लिया।
देवलसारी मंदिर के पुजारी श्री घनश्याम उनियाल जी से जब गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल के संपादक ने मंदिर के और रहस्यों के बारे में जानकारी प्राप्त की तो उन्होंने बताया कि इस मंदिर में शिवलिंग के ऊपर दूध नहीं चढ़ाया जाता बल्कि दूध की जगह जल चढ़ाया जाता है। आश्चर्यजनक यह है कि जो जल यहां चढ़ाया जाता है उसका निकास कहाँ होता है,यह आज तक रहस्य बना हुआ है। जितना जल चढ़ाओ शिवलिंग सूखा ही रहता है।
एक बात और है कि यहां श्रद्धालु नहीं बल्कि मंदिर के पुजारी द्वारा भक्तों के लाए हुए जल को शिवलिंग पर स्वयं चढ़ाया जाता है।
उन्होंने बताया कि दुनिया भर के लगभग सभी शिवालयों में शिवलिंग के साथ जलेरी होती है, यानी जलेरी को लांघा नहीं जाता है। लेकिन जाखणीधार विकासखंड के प्राचीन देवलसारी शिवालय में शिवलिंग के साथ जलेरी नहीं है। यहां मंदिर की पूरी परिक्रमा करने का विधान है। इस मंदिर में कुदरत का अनोखा चमत्कार देखने को मिलता है। जलेरी नहीं होने से इस मंदिर की आधी नहीं, बल्कि पूरी परिक्रमा की जाती है, यह आश्चर्यजनक बात है।
उन्होंने जानकारी दी कि यहाँ नाग-नागिन के जोड़े दिखाई भी दिखाई देते हैं, किन्तु बहुत कम लोगों को । किंवदंती है कि नाग नागिन का यह जोड़ा महादेव के मंदिर की रक्षा करते हैं। यह भी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहाँ जो भी कुछ मांगता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। लगभग 200 साल पुराना यह शिव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसकी अपनी कुछ अनूठी परंपराएं और कई रहस्य श्रद्धालुओं को हैरत में डाल देते हैं।
देवलसारी महादेव मंदिर के बायीं ओर दो मध्यम आकार के बड़े मंदिर हैं, उनमें से एक में भगवान शिव तथा माता पार्वती की वरद हस्त मुद्रा में मूर्तियां स्थापित हैं। दूसरे में मां त्रिपुरी सुंदरी दुर्गा, विघ्नहर्ता गणेश और मां काली की भव्य मूर्तियां हैं। इसके अलावा मुख्य मंदिर में एक विशाल शिवलिंग और उसके पीछे माता लक्ष्मी और विघ्नहर्ता गणेश जी की मूर्तियां स्थापित हैं।