शहर की चकाचौंध से वापस अपने बंजर जमीन को आबाद करने की टंखी सिंह की पहल को सुविधाओं का ग्रहण

टिहरी गढ़वाल 4 नवम्बर 2022। नरेन्द्र नगर प्रखंड के रौंदेली गांव निवासी टंखी सिंह राणा एम.एस. देहरादून कार्यालय से कोरोनाकाल में सेवानिवृत्त हुए तो उन्होंने अपने गांव की पुश्तैनी खेती और मकान की ओर रुख किया और पुश्तैनी खेती को आबाद करने का निश्चय किया।
टंखी सिंह ने रौंदेली गांव में टूट चुके मकान के बजाय गजा तमियार रोड पर 9 किलोमीटर पर अपनी पुरानी 200 नाली जमीन तथा पुरानी छानी (मकान) को फिर से लहलहाने का मन बनाया। पुश्तैनी जमीन पर खेती बाड़ी का काम शुरू किया। इन्हीं खेतों में बहुत सालों पहले लहसुन, तम्बाकू, अदरक, मटर, मक्का, राई,पालक, गेंहू, अरहर (तोर) की खूब फसल हुआ करती थी।
यही सोचकर टंखी सिंह राणा ने सेवानिवृत्त होने के बाद यहां अपना आशियाना बनाया है और अब राई, मटर, अरहर मक्का लहसुन पैदा कर रहे हैं । उनका कहना है कि पानी और बिजली की काफी दिक्कत है , पानी एक किलोमीटर दूर प्राकृतिक स्रोत से लाना पड़ता है तो प्रकाश व्यवस्था के लिए सौर ऊर्जा प्लेट लगाई गई है, जबकि आधा किलो मीटर दूर दूसरे मकान तक विजली की लाइन है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर सौडू नामक यह तोक प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है।
सवाल यह है कि क्या टँखी सिंह की इस मनसा पर लगे बिजली व पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के ग्रहण को सरकारी मशीनरी हटा पाएगी या नहीं ? क्या पलायन रोकने के लिए सफेद हाथी बने पलायन आयोग की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह नहीं उठाने चाहिए। सरकार जब तक गांवों में पक्की सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा,स्वास्थ्य सुविधाओं में बेहतरी नहीं करती और आये दिन फ़सलों को बर्बाद करने वाले जंगली जानवरों की रोकथाम के उपाय नहीं करती तक तक पलायन रोकने की बात बेमानी है।
यह समस्या सिर्फ अकेले टंखी सिंह की ही नहीं बल्कि कमोबेश कोविड काल में घर वापसी किए व हर उन सभी लोगों के सामने भी है जो अपने बंजर भूमि को आबाद करने का सपना सँजोए हैं।