प्रवेशोत्सव पर खास रिपोर्ट-2
क्रमशः
अब गौर से एक बार फिर से देखिए,इस वर्ष उतराखंड सरकार ने छ हजार विद्यालयों को बंद करने का गलत निर्णय लिया है । इससे गरीब घरों के बच्चे शिक्षा विहीन होंगे अथवा मजबूरी में घर से दूर निजी विद्यालयों में प्राइमरी स्तर तक भी पढ़ने को मजबूर हो जाएंगे!! और एक विद्यालय पर तीन अध्यापक रहे होंगे तो 18000 हजार परिवारों का शिक्षा विभाग से मिलने वाला एक सुरक्षित एवं सम्मान जनक रोजगार हमेशा हमेशा के लिए बन्द होगा। जिससे हजारों घर आर्थिक रूप से भी प्रभावित होंगे। तो इससे पलायन ही बढ़ेगा। इससे पहले कई-आई.टी.आई.(औधोगिक प्रशिक्षण संस्थान) बन्द कर चुकी है। पूर्व शिक्षक श्री विजय प्रकाश डंगवाल का कहना है कि,सरकारी स्कूलों का प्राईवेट स्कूल माफिया कहो या बिजनेस लॉबी के द्वारा विधिवत दुष्प्रचार किया गया। एक समय अवश्य बुरी दशा आयी जब सरकारों ने स्कूल थोक में खोले और एक एक अध्यापक तैनात कर दिए। जिनके पास पैसा था उन्होंने प्राईवेट की तरफ रुख किया। गरीबों के बच्चे अभी भी पढ़ ही रहे हैं।
डंगवाल जी कहते हैं कि प्राईवेट स्कूल सम्पन्न लोगों के लिए पैसा फूकने का फाईवस्टार वाला फैशन बन गये हैं।और दिखावे की इसी शेखी में मध्यम वर्ग के लोग सरकारी स्कूलों के छोड़ कर निजी स्कूलों के आर्थिक बोझ को झेल रहें हैं।वास्तव में सरकारी स्कूलों में एक कमी तो है ही कि वर्षों से अध्यापकों की कमी है और सरकार गलत बहाना बना कर बन्द कर रहे हैं। और सरकार ने अपने चहेतों के शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा देते हुए आर्थिक फायदा पहुंचाने का अप्रत्यक्ष कार्य अपने नौकर शाहों के माध्यम से जारी रखा हुआ है। और मध्यम वर्ग के लोग इसमें दिखावे के लिए पिस रहे हैं। जबकि,सरकारी शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र ज्यादा कामयाब निकलते हैं।
सरकारी शिक्षण संस्थानों को बन्द करने के निर्णय के सम्बन्ध में वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील देव सुरीरा का मानना है कि सरकार का निर्णय बहुत गलत है और इससे गरीब घरों के बच्चे आर्थिक बोझ को न झेलने के कारण स्कूल छोड़ रहे हैं। जिससे बच्चों के संविधान में दिए गए शिक्षा और समानता के अधिकार से वंचित होंगे।
यह बात बहुत सही है कि सरकारी संस्थानों के छात्रों को सरकारी तौर पर निशुल्क सुविधाएं और बहुत अच्छे अवसर निशुल्क उपलब्ध होते हैं। और बच्चों को निशुल्क बड़े मंचों पर प्रतिभा को निखरने के सुनहरे प्रयाप्त अवसर रहते हैं। यदि जन प्रतिनिधि सरकार पर दबाव बनाये और सरकार अपने शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थानों को बंद करने के बजाय उनमे हर बिषय वार नियुक्तियाँ करने का दृढ़ संकल्प ले तो निश्चित रूप से उन संस्थानों में के माध्यम से अच्छी शिक्षा और बेरोजगारी को दूर कर पलायन का रोना बन्द कर सकती है।और निकट भविष्य में इसके सुखद परिणाम राज्य की जनता को मिलेंगे।
आय कर विभाग ज्वाइंट कमिश्नर शांति प्रसाद नौटियाल का सुझाव है, कि देश में स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए ग्रामीण चिकत्सा और शिक्षा कैडर अलग बने। इस स्तर पर नियुक्तियाँ हो।और हमारा भी मानना यह है कि ग्रामीण कैडर यानी दुर्गम क्षेत्र में सेवाएं देना और शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को इसका लाभ सरकार उच्च शिक्षण और प्रशिक्षण संस्थानों के साथ रोजगार में दे । तो ब्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। और पलायन भी रुकेगा। इससे शिक्षण संस्थानों में छात्र संख्या भी बढ़ेगी। शिक्षा और चिक्तित्सा में समानता होनी आवश्यक है। तभी जा कर स्थिति में सुधार आकर राज्य निर्माण के मायने हासिल होंगे।