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डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बनने की कथा सुनाई 

डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बनने की कथा सुनाई 
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कल शिव पार्वती की शादी होगी

टिहरी गढ़वाल 13 सितम्बर। शिव पुराण कथा के पांचवें दिन कथा वाचक राष्ट्रीय संत दुर्गेश महाराज ने डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बनने की कथा सुनाते बड़ा सुंदर वर्णन करते हुए कहा कि एक बार नारद जी साधु संतों के साथ जंगल से गुजर रहे थे। तभी डाकू रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया और बंदी बना लिया।

इस पर साधु संतों ने उनसे पूछा कि तुम ये अपराध क्यों करते हो? तो रत्नाकर ने कहा कि अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए मैं ऐसा करता हूं। इस पर साधु संतों ने कहा, बेटा जिस परिवार के लिए तुम यह अपराध करते हो, क्या वे तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार है ? ये बात सुनकर रत्नाकर ने साधु संतों को एक पेड़ से बांधा और इस प्रश्न का उत्तर लेने के लिए अपने घर गए। 

उन्होंने जब ये सवाल अपने परिवार के लोगों से किया तो उनको यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कोई भी उनके इस पाप में भागीदार नहीं बनना चाहता था। तब वापस आकर साधु संतों को स्वतंत्र कर दिया और अपने पापों के लिए क्षमा प्रार्थना की। इस पर साधु संतों ने उनको राम नाम का जपने को कहा लेकिन रत्नाकर के मुंह से राम-राम की जगह ‘मरा-मरा’ शब्द निकल रहा था। तब साधु संतों ने कहा तुम मरा-मरा ही बोलो इसी से तुम्हें राम मिल जायेंगे। इसी शब्द का जाप करते हुए रत्नाकर तपस्या में लीन हो जाते हैं। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें दर्शन दिए और उनके शरीर पर बनी बांबी को देखकर रत्नाकर को वाल्मीकि का नाम दिया। तब से उन्हें वाल्मीकि के नाम से जाना जाता है। साथ ही ब्रह्मा जी ने उनको रामायण की रचना करने की प्रेरणा भी दी। कहने का तात्पर्य है कि जो मनुष्य अनैतिक कार्यों से अपने परिवार के लिए धनार्जन करता है वह खुद ही पाप का भोगी होता है।

डॉ दुर्गेश आचार्य ने आगे कहा कि…
महर्षि वाल्मीकि एक बार एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे जो कि प्रेम करने में लीन था। उन पक्षियों को देखकर महर्षि काफी प्रसन्न हो रहे थे और मन ही मन सृष्टि की इस अनुपम कृति की प्रशंसा भी कर रहे थे। लेकिन तभी एक शिकारी का तीर उस पक्षी जोड़े में से एक पक्षी को आ लगा, जिससे उसकी मौत हो गयी। यह देख के महर्षि को बहुत क्रोध आया और उन्होंने शिकारी को संस्कृत में ये श्लोक कहा।

“मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥”

और मुनि द्वारा बोला गया यह श्लोक ही संस्कृत भाषा का पहला श्लोक माना जाता है। जिसका अर्थ था कि जिस दुष्ट शिकारी ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया है उसे कभी चैन नहीं मिलेगा। लेकिन ये श्लोक बोलने के बाद वाल्मीकि सोचने लगे कि आखिर ये उनके मुंह से कैसे और क्या निकल गया। उनको सोच में देखकर नारद जी सामने प्रकट हुए और कहा कि यही आपका पहला संस्कृत श्लोक है। अब इसके बाद आप रामायण की रचना करेंगे।

एक अन्य प्रसंग में व्यास जी ने कहा कि एक बार सती जी ने सीता का वेश बनाकर भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए निकल पड़ी। जब सती जी ने भगवान राम के सामने पहुंची तो मर्यादा पुरुषोत्तम ने सती जी को तुरंत पहचान लिया और भगवान भोलेनाथ का समाचार पूछा। तब सती जी लज्जित होकर भगवान शिव जी के पास वापस चली आई। जब शिवजी ने पूछा तो माता सती झूठ बोल गई और कहा कि हे स्वामी मैने कोई परीक्षा ही नहीं ली और वहां जाकर आपकी तरह मैंने भी प्रणाम किया, साथ सती जी ने यह भी कहा कि हे नाथ आपने जो भी कहा वह झूठ नहीं हो सकता है। ऐसे में परीक्षा लेने का कोई औचित्य नहीं होता। यह सुनकर भगवान शिवजी को  बड़ा दुःख होता है और वे सती को अपनी पत्नी के रूप में परित्याग करने का प्राण कर लेते हैं। इस प्रकार से शिवजी का सती को पत्नी रूप  में परित्याग, सती का शरीर त्याग, पार्वती के रूप में पुनर्जन्म तथा उनकी कठोर तपस्या. कामदेव द्वारा शिवजी का ध्यान भंग करना, कामदेव का भस्म होना, अंत में पार्वती जी का शिवजी के साथ विवाह होने की घटना घटती है।

आपको बता दें कि शिव पुराण सभी पुराणों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुराणों में से एक है। शिव महापुराण में भगवान शिव के विविध रूपों,अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है। इसमें शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है। 

इस प्रकार पांचवें दिन की कथा के दौरान पंड़ाल खचाखच भरा रहा। इस मौके पर प्रताप नगर ब्लाक प्रमुख प्रदीप रमोला, वरिष्ठ एडवोकेट उमा दत्त डंगवाल, एडवोकेट माधुरी पांडेय, पूर्व प्रमुख विजय गुनसोला, लक्ष्मण रावत, आनंद घिल्डियाल, रामलाल डोभाल, द्वारिका भट्ट, मोहनलाल सेमवाल, महाजन रावत, गिरिजा प्रसाद सेमवाल, महंत गोपाल गिरी, निर्मला बिजल्वाण, सुनील कोठारी, सुमति सजवाण, जगतमणि पैन्यूली, नित्यानंद बहुगुणा, भरत सिंह भंडारी, भगवती भद्री, महिमा नन्द नौटियाल, नवीन सेमवाल आदि मौजूद रहे। 


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Govind Pundir

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