पुरानी टिहरी बांध विस्थापितों की समस्याओं के निराकरण के लिए संघर्ष जारी रहेगा-ठाकुर भवानी प्रताप
पुरानी टिहरी के जन्मदिन पर होगा भव्य आयोजन
टिहरी गढ़वाल 9 नवम्बर। पुरानी टिहरी बांध विस्थापित संघर्ष समिति के अध्यक्ष ठाकुर भवानी प्रताप सिंह पंवार ने गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल को बताया कि पुरानी टिहरी शहर के लोग जो कि टिहरी बाँध निर्माण के कारण विस्थापित हुये हैं उनकी आज भी कई समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं जिसके लिए समिति आगे संघर्ष की रणनीति पर विचार कर रही है।
श्री पंवार ने बताया कि पुरानी टिहरी शहर के विभिन्न वार्डों के मूल विस्थापित जो कि टिहरी बांध के कारण विस्थापित हुए हैं लगभग 21 वर्षों बाद आज भी अपनी मूलभूत सुविधाओं वंचित हैं। विस्थापितों की समस्याएं जस की तस बनी हुयी हैं। पुरानी टिहरी में 13 विभिन्न वार्डो में बंटा हुआ था। सरकार ने वार्ड संख्या 01 से वार्ड संख्या 06 तक के भूमिधरों को पूर्व में 5 रु० (पाँच रुपये) प्रति वर्ग फीट की दर से प्रतिकर का भुगतान कर दिया गया था जबकि अन्य को 30 रुपये के हिसाब से भुगतान किया। कतिपय काश्तकारों द्वारा भू-अर्जन अधिनियम की धारा-18 एवं धारा- 28 ए के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किये गये थे जिन्हें माननीय न्यायालय एवं माननीय उच्च न्यायालय द्वारा भूमि की दरों को बढ़ाते हुये 30 रू0 प्रति वर्ग फुट की दर से प्रतिकर भुगतान के आदेश दिये गये थे और कई वार्डो के परिवारों को 5-30 के हिसाब से प्रतिकर भी प्राप्त हो चुका है, परन्तु विभाग द्वारा अवशेष परिवारों को आज तक भी उक्त दर से भूमि के प्रतिकर का भुगतान नहीं किया गया है जिस कारण विस्थापित दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
आज 35 से 40 वर्ष से भी अधिक का समय व्यतीत हो गया है किन्तु भुगतान आज तक नहीं किया गया है, जिन परिवारों के मुखिया के नाम पर भूमि दर्ज है वह मृत्यु प्राप्त हो गये हैं, अब उनके आश्रित हैं जो काफी वृद्ध हो गये हैं और कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं, जिस प्रकार अन्य वार्डो को भूमि का प्रतिकर 30 रू0 प्रति वर्ग फीट की दर से भुगतान किया है ठीक उसी प्रकार वार्ड नं0 01 से वार्ड नं0 06 तक के अवशेष परिवारों को भी 30 रुपये वर्ग फीट की दस से भूमि का प्रतिकर भुगतान किया जाये। बांध विस्थापितों ने राष्ट्रहित में अपनी पैतृक संपत्ति की कुर्बानी दी है जिसके परिणाम स्वरूप आज टिहरी बांध से आधे से भी अधिक भारत में विद्युत आपूर्ति हो रही है। जिससे टिहरी शहर के लोगों को आज भी गर्व होता है। लेकिन विस्थापितों को आज 21 वर्ष पूर्ण हो चुके है, लेकिन आजतक अपने हक हकूक की खातिर अपने न्यायोचित मांग के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है।
टीएचडीसी के मानकों के आधार पर पुरानी टिहरी शहर के उन विस्थापितों भूमिधरों को भवन निर्माण सहायता से वंचित रखा गया है, जिन्होंने आवासीय भूखण्ड के बदले नगद राशि ली है। जबकि पुनर्वास नीति 1998 में स्पष्ट कहा गया है, कि ‘नगद राशि का विकल्प स्वीकार करने पर भी विस्थापित परिवार पुनर्वास नीति के अंतर्गत स्वीकार अन्य पुनर्वास अनुदान पाने का हकदार होगा। नीति में स्पष्ट है कि नगर राशि आवासीय प्लॉट का विकल्प है भवन निर्माण सहायता का नहीं। इसलिये भवन निर्माण सहायता से वंचित सभी परिवारों को भवन निर्माण सहायता, व्यावसायिक छतिपूर्ति से वंचित 68 व्यवसायियों को नियमानुसार छतिपूर्ति, 43 को छूटी सम्पति का भुगतान, सर्वे सीट में दर्ज व्यवसायियों को दुकान आवंटन सहित सभी लंबित मामलों का निस्तारण किया जाना चाहिए।
हनुमंत राव कमेटी की सिफारिशों पर निर्णय के समय केन्द्र सरकार ने सन् 1998 में टिहरी बांध विस्थापितों को 15 रुपये मासिक रियायती दरों पर बिजली उपलब्ध करना स्वीकार किया था।
उन्होंने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय में एन०डी० जुयाल बनाम भारत सरकार व अन्य के मामले में सुनवाई के दौरान राज्य (उत्तर प्रदेश) सरकार की ओर से 29 मार्च 2000 को प्रस्तुत शपथ पत्र में कहा गया था “यह निर्णय ले लिया गया है कि राज्य सरकार बांध विस्थापितों को नाममात्र की दर पर बिजली उपलब्ध कराएगी, उत्तराखंड गठन के बाद 27 फरवरी 2002 को इसी मामले में राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र में कहा गया बाध विस्थापितों को रियायती दर पर बिजली देने के निर्णय को टिहरी बांध से विद्युत उत्पादन शुरू होने के बाद क्रियान्वित किया जाएगा, इसके बाद 14 मार्च को टी०एच०डी०सी० के शपथ पत्र में भी हनुमन्त राव की सिफारिशों पर राज्य सरकार द्वारा 15 रुपये की मासिक रियायती दर पर बिजली दे सकने की बात कही गयी। टिहरी बांध से विद्युत उत्पादन शुरू हुए आज 21 वर्ष हो चुके है इसलिये अब राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में दिये गये। शपथ पत्र के अनुरूप सभी शहरी व ग्रामीण विस्थापितों को 15 रुपये मासिक रियायती दरों बिजली का निर्णय लागू करना चाहिए।
टिहरी बांध के प्रत्येक विस्थापित परिवार के कम से कम एक सदस्य को टिहरी बांध में रोजगार दिये जाने के उ0प्र0 सरकार के शासनादेश वर्ष 1973 से लेकर 1998 तक लागू रहे, लेकिन इन 25 वर्षो से मात्र 5 प्रतिशत परिवार के सदस्य ही बांध में नौकरी पा सके।
उधर उत्तराखंड गठन से पूर्व ही 1998 में नौकरी की गारंटी के शासनादेश परियोजना टास्क फोर्स ने वापस लेकर विस्थापितों के साथ धोखा धडी की हनुमंत राव कमेटी में विस्थापितों के रोजगार का मामला प्रमुखता से उठा था और कमेटी ने वैकल्पिक रोजगार हेतु रोजगार योजना तैयार करने व विस्थापित बेरोजगारों को प्रशिक्षण की सिफारिश की थी। सर्वे टी०एच०डी०सी० को कराना था और रोजगार योजना राज्य सरकार द्वारा बनायी जानी थी। सर्वोच्च न्यायालय में टी०एच०डी०सी ने शपथ पत्र में यह स्वीकार भी किया लेकिन अब टी०एच०डी०सी० और राज्य सरकार दोनों ही इस पर मौन है। उक्त के अतिरिक्त मूल विस्थापित परिवारों के आश्रितों को नौकरियों में तथा झील क्षेत्र में वोटिंग एवं अन्य पर्यटन सम्बन्धि किया कलापों में रोजगार हेतु विस्थापित परिवारों के आश्रितों को वरीयता प्रदान की जाय, पर्यटन विकास के माध्यम से झील के समीप तथा कोटी कालोनी क्षेत्र में जो दुकानें निर्मित की जा रही है उनमें मूल विस्थापितों आश्रितों को प्रथम वरीयता प्रदान कर उन्हें रोजगार से जोड़ा जाए ताकि पलायन को भी रोका जाए।
इस मौके पर समिति के उपाध्यक्ष आनन्द प्रकाश घिल्डियाल, सचिव विजय सिंह परमार , कोषाध्यक्ष सन्तोष पांडे आदि मौजूद रहे।