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हिन्दी का भारत के विश्वगुरु बनने मे योगदान

हिन्दी का भारत के विश्वगुरु बनने मे योगदान
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किसी भी राष्ट्र की भाषा उसकी पहचान, उसकी संस्कृति और उसकी प्राचीन धरोहर का आधार होती है। भारत के संदर्भ में यह विशेष रूप से सत्य है, क्योंकि यहाँ की सांस्कृतिक विविधता, इतिहास और परंपराएं हजारों वर्षों से भाषा के माध्यम से ही संरक्षित और संचारित होती आई हैं। हिन्दी, भारत की प्रमुख भाषा, न केवल संचार का माध्यम है, बल्कि यह हमारे राष्ट्र के आदर्शों, मूल्यों और विचारधारा का प्रतिबिंब है।

औपनिवेशिक काल में हिन्दी की भूमिका:
ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय समाज, संस्कृति, और परंपराओं पर बाहरी शक्तियों द्वारा प्रश्न उठाए गए और उन्हें कमजोर करने का प्रयास किया गया। ऐसे कठिन समय में, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय और अन्य महापुरुषों ने हिन्दी को राष्ट्र की अस्मिता और स्वाभिमान का प्रतीक बनाया। हिन्दी भाषा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने जन-जन में राष्ट्रवाद की भावना को जागृत किया और स्वराज के सपने को साकार करने में योगदान दिया। इकबाल का प्रसिद्ध शेर “सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा” भारतीय जनमानस के दिलों में हिन्दी के प्रति गर्व को और गहरा कर गया।

हिन्दी का वैश्विक विस्तार और योगदान:
आज, हिन्दी दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। भारत के विश्वगुरु बनने की दिशा में हिन्दी का महत्व और भी बढ़ गया है। भारत सरकार के निरंतर प्रयासों से हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में पहचान मिली है। ‘नमस्ते इंडिया’, ‘नमस्ते ट्रम्प’, और ‘नमस्ते लंदन’ जैसे आयोजन हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक मजबूत स्थान दिलाने में सफल रहे हैं। ये कार्यक्रम न केवल हिन्दी के प्रचार-प्रसार का माध्यम बने, बल्कि भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और उसकी वैश्विक शक्ति को भी प्रस्तुत करते हैं।

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और हिन्दी:
हालांकि, अभी भी विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और अन्य तकनीकी क्षेत्रों में हिन्दी के विकास के लिए काफी काम करना बाकी है। जब तक हिन्दी इन क्षेत्रों में अपनी पहचान नहीं बनाएगी, तब तक यह वैश्विक स्तर पर अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पाएगी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हिन्दी केवल साहित्य और संस्कृति तक सीमित न रहे, बल्कि यह तकनीकी शिक्षा और अनुसंधान की भी भाषा बने।

हिन्दी का भविष्य और हमारी भूमिका:
इस हिन्दी दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम हिन्दी को न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में बल्कि सामाजिक और व्यावसायिक स्तर पर भी और अधिक अपनाएँ। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और डिजिटल माध्यमों पर हिन्दी की उपस्थिति को और मजबूत करें। हिन्दी भाषा को तकनीकी और शैक्षणिक क्षेत्र में उन्नत करने के प्रयास हों ताकि यह भारत के विश्वगुरु बनने के सपने को साकार करने में अपनी भूमिका निभा सके।

डॉ. ज्योति प्रसाद गैरोला की कलम से


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Govind Pundir

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