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हिमालयी राष्ट्रों को हिमालय बचाने के लिए दुनिया को जगाना होगा

हिमालयी राष्ट्रों को हिमालय बचाने के लिए दुनिया को जगाना होगा
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हिमालय केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के पर्यावरण संतुलन का प्रमुख स्तंभ है। इसके संरक्षण को नजरअंदाज करना हमारे लिए गंभीर संकट ला सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर हिमालय को बचाने के लिए समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में इसका बड़ा हिस्सा बर्फ से वंचित हो सकता है। इसका सीधा असर गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों पर पड़ेगा, जिनके जल स्तर में भारी कमी आ सकती है, जिससे पूरे एशिया का जलवायु संतुलन बिगड़ जाएगा। इसके साथ ही, समुद्र तटीय क्षेत्रों पर बाढ़ का गंभीर खतरा भी उत्पन्न हो सकता है।हिमालय में 15 हजार से अधिक छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं, जो लगातार पिघल रहे हैं। लगभग दो हजार छोटी-बड़ी झीलें भी हैं, जो भविष्य में केदारनाथ जैसी आपदा का कारण बन सकती हैं।

हिमालय की बिगड़ती स्थिति पर सबसे पहले ध्यान आकर्षित करने वाले पर्यावरणविद् स्व. सुंदरलाल बहुगुणा थे। उन्होंने हिमालय को बचाने के लिए जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक पदयात्रा की, जिसमें मैंने भी वर्ष 2009-10 में भाग लिया। इस यात्रा के दौरान, हमने विभिन्न राज्य सरकारों और सिविल सोसाइटी के साथ हिमालय के संरक्षण पर गंभीर विचार-विमर्श किया। हमारा उद्देश्य था कि हिमालयी राज्यों और हिमालय से लाभ लेने वाले अन्य राज्यों को मिलकर हिमालय की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस मुहिम को समर्थन मिलना जरूरी है, क्योंकि हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से उत्पन्न होने वाले परिणाम वैश्विक स्तर पर विनाशकारी होंगे।

हमने दिल्ली में विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर “हिमालय यूनिटी मूवमेंट” का गठन किया और नौ दिसंबर 2010 को यह प्रस्ताव पारित किया कि हर साल नौ दिसंबर को हिमालय दिवस के रूप में मनाया जाएगा। वर्ष 1991-92 में मैंने तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष स्व. प्रणब मुखर्जी से मध्य हिमालय के विकास के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट का प्रस्ताव रखा था, जिसमें टिहरी और उत्तरकाशी को मॉडल के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया गया। इस परियोजना पर विचार-विमर्श में बाबू भाई नवलावाला और एआर कोहली जैसे वरिष्ठ सलाहकार भी शामिल थे। यह रिपोर्ट आज भी नीति आयोग में उपलब्ध है और इसे लागू करने की आवश्यकता है।

हिमालय में ऐसी क्षमता है जो भारत का भविष्य बदल सकती है। इसे एक वैश्विक मुद्दा बनाना न केवल हिमालयी राज्यों बल्कि पूरे देश और विश्व के लिए अत्यंत लाभकारी होगा। विशेष रूप से देवभूमि उत्तराखंड को इससे अपार लाभ हो सकता है। इसलिए, अब समय आ गया है कि हिमालयी राष्ट्र एकजुट होकर हिमालय की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं और दुनिया को इसके महत्व के प्रति जागरूक करें।

प्रस्तुति: किशोर उपाध्याय, प्रणेता विश्व हिमालय संगठन एवं विधायक टिहरी।


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Govind Pundir

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