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झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती के उपलक्ष्य में चलाया स्वच्छता अभियान

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती के उपलक्ष्य में चलाया स्वच्छता अभियान
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फरीदाबाद हरियाणा 24 नवंबर 2024। भारत की महान वीरांगना एवं राष्ट्र आदर्श नारी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती के उपलक्ष्य में तिरखा कॉलोनी में महिलाओं
अंतरास्ट्रीय ट्रस्ट द्वारा स्वच्छता अभियान चलाया गया

इस अवसर पर अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के संस्थापक डॉ हृदयेश कुमार ने रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनके वीरता एवं साहस जैसे गुणों को आत्मसम्मान करते हुए मातृभूमि की रक्षा करने के लिए संकल्पित होना चाहिए उन्हें अपने जीवन का आदर्श मानते हुए राष्ट्र हित में हमसे जो हो सके करना चाहिए और कहा कि हमारे देश में ऐसी कई महान और अनुकरणीय व्यक्तित्व हुए हैं जिनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सार्थक दिशा प्रदान कर सकते हैं

ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ एमपी सिंह ने कहा कि हम सभी का दायित्व है कि हम प्रकृति और पर्यावरण
को स्वच्छ और सुंदर रखने में अपना अपना योगदान देकर राष्ट्र सेवक बनें और अधिक से अधिक स्वच्छता अभियान में एकत्रित कूड़ा कचरा उठाने वाले पर्यावरण मित्रों अपने साथ कनेक्ट करने में सक्षम हो कर कार्य को बढ़ावा दें
संस्थापक डॉ हृदयेश कुमार ने विशेष रूप से बताया

“बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।”

रानी लक्ष्मीबाई, जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और झांसी की रानी के रूप में जानी जाती हैं, वीरता और समर्पण की प्रतीक हैं। रानी लक्ष्मीबाई भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक बहादुर वीरांगना थीं। झांसी की रानी ने आखिरी सांस तक अंग्रेजों से संघर्ष किया और उनकी वीरता की कहानियां आज भी जिंदा हैं। उनकी मृत्यु के बाद भी वे अंग्रेजों के हाथ नहीं आईं। रानी लक्ष्मीबाई अपनी मातृभूमि के लिए अपनी जान की बाजी लगाने के लिए तैयार थीं। ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ यह वाक्य आज भी हमारे दिलों में गूंजता है
18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई को लड़ाई करते समय ज्यादा चोट तो नहीं लगी थी परंतु काफी खून बह गया था। जब वह घोड़े पर सवार होकर दौड़ रही थी तब एक बीच में एक नाला पड़ा
रानी लक्ष्मीबाई को लगा अगर यह नाला पार कर लिया तो कोई उसे पकड़ नहीं कर पाएगा। परंतु जब वह नाले के पास पहुंची तब उनके घोड़े ने आगे जाने से मना कर दिया। तभी अचानक पीछे से रानी लक्ष्मीबाई के कमर पर तेजी से राइफल की गोली आकर लगी, जिसके कारण काफी ज्यादा खून निकलने लगा। खून को रोकने के लिए जैसे ही उन्होंने अपनी कमर पर हाथ लगाया तभी अचानक उनकी हाथ से तलवार नीचे गिर गई।
एक अंग्रेजी सैनिक ने उनके सिर पर तेजी से वार जिसके कारण उनका सर फूट गया। फिर वह घोड़े पर से नीचे गिर पड़ीं। कुछ समय बाद एक सैनिक रानी लक्ष्मी बाई को पास वाले मंदिर में लेकर गया। अभी तक थोड़ी-थोड़ी उनकी सांसें चल रही थीं। उन्होंने मंदिर के पुजारी से कहा कि मैं अपने पुत्र दामोदर को आपके पास देखने के लिए छोड़ रही हूं ‌। यह बोलने के बाद उनकी सांसे बंद हो गईं। फिर उनका अंतिम संस्कार किया गया। ब्रिटिश जनरल हयूरोज ने रानी लक्ष्मीबाई की बहुत सारी तारीफ में कहा था कि वह बहुत चतुर, ताकतवर और वीर योद्धा थीं।


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Govind Pundir

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