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मानव भारती के छात्रों ने थानो गांव में जाकर उद्यमिता और आर्गेनिक फार्मिंग को जाना

मानव भारती के छात्रों ने थानो गांव में जाकर उद्यमिता और आर्गेनिक फार्मिंग को जाना
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महिला लघु उद्यमियों और प्रगतिशील किसान के कार्यों को देखा और पूछे कई प्रश्न

देहरादून। मानवभारती स्कूल, देहरादून ने नेचर कनेक्ट प्रोग्राम के तहत कक्षा आठ के छात्र-छात्राओं को थानो गांव का भ्रमण कराया, जहां उन्होंने महिला लघु उद्यमियों ज्ञानबाला रावत और किरण, प्रोग्रेसिव आर्गेनिक फार्मर राजेंद्र सोलंकी से मुलाकात की और उनके कार्यों के बारे में विस्तार से बात की। इस दौरान छात्र-छात्राओं ने कौशल विकास से उद्यमिता को जाना और आर्गेनिक फार्मिंग के लाभ, वर्मी कम्पोस्ट, केंचुओं की खेती, पॉलीहाउस में खेती, मधुमक्खी पालन से शहद उत्पादन को नजदीक से देखा।

मानव भारती स्कूल क्लास रूम और क्लास रूम से बाहर विविध आयामों पर छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व विकास के लिए कार्य कर रहा है। किताबों के साथ व्यावहारिक शिक्षा पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है।

कक्षा आठ के 35 छात्र-छात्राओं का दल रायपुर एयरपोर्ट रोड स्थित थानो गांव पहुंचा, जहां महिला उद्यमियों ज्ञानबाला रावत व किरण रावत ने उनके सामने पहाड़ की विशेष मिठाई अरसा बनाए। इस दौरान बच्चों ने उनसे अरसा बनाने की विधि, अरसे बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री, अरसे की मार्केटिंग, पहाड़ की संस्कृति में अरसे के महत्व, उनको प्रति माह की संभावित आय आदि के बारे में कई सवाल पूछे।

महिला उद्यमियों ने छात्र-छात्राओं को बताया कि पहले वो एलईडी बल्ब की लड़ियां बनाने की फैक्ट्री में काम करते थे। पर, वहां स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों की वजह से उन्होंने काम छोड़ दिया। आपस में चर्चा करने के बाद अरसा बनाने पर विचार किया। कुछ दिन अरसे बनाना सीखा और आज उनके पास दिल्ली, मुंबई, देहरादून सहित आसपास के क्षेत्रों से काफी आर्डर आते हैं। शादी विवाह के लिए अरसे की मांग की जाती है। इसके साथ ही, वो आर्गेनिक उत्पादों की मार्केटिंग, अचार बनाने का काम भी करते हैं। इस मौके पर सभी बच्चों ने अरसे का स्वाद लिया और अपनी अगली यात्रा के लिए प्रस्थान किया।

आर्गेनिक फार्मिंग

छात्र-छात्राओं का दल रामनगर डांडा ग्राम पंचायत के अंतर्गत गुंदियाल गांव पहुंचा, जहां प्रोग्रेसिव फार्मर राजेंद्र सोलंकी ने उनको मौन पालन (मधुमक्खी पालन से शहद उत्पादन) कैसे होता है, के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बच्चों के सवालों पर मधुमक्खियों में रानी मधुमक्खी के महत्व, शहद उत्पादन के लिए आवश्यक सावधानियां, मधुमक्खियों के बॉक्स एवं छत्ते बनाने की प्रक्रिया, मधुमक्खियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट, मधुमक्खियों से परागण की प्रक्रिया, खेती में मधुमक्खियों के योगदान, छत्तों से शहद प्राप्त करने की विधि आदि के बारे में जानकारी दी।

पॉलीहाउस में लौकी की बेल, अदरक, टमाटर, भिंडी, प्याज, लहसुन, धनिया, गोभी, ब्रोकली आदि की खेती कैसे की जाती है, के बारे में जाना। साथ ही, ड्रिप इरीगेशन सिस्टम के बारे में जाना। ड्रिप इरीगेशन सिस्टम के लिए बिछाए गए पाइप, पाइप्स में बने छिद्रों, बड़े टैंक से पानी की सप्लाई को देखा।

किसान राजेंद्र सोलंकी ने बच्चों को बताया कि पॉलीहाउस में, जहां न तो बाहर से हवा आती है और न ही मधुमक्खियां या पक्षी आते हैं, वहां परागण की प्रक्रिया कैसे होती है? आर्गेनिक फार्मिंग एवं सामान्य खेती में क्या अंतर है? आर्गेनिक सब्जियां सामान्य सब्जियों से अधिक दाम पर क्यों बिकती हैं? आर्गेनिक खेती के लिए आवश्यक तत्व साफ पानी और जैविक खाद की व्यवस्था कैसे की जाती है? छत पर सब्जियां कैसे उगाएं?

उन्होंने छात्र-छात्राओं को वर्मी कम्पोस्ट पिट दिखाए, जिनमें केंचुए गोबर और पत्तियों से खाद बना रहे हैं। केचुएं गोबर और पत्तियों को महीन कणों में तोड़कर वर्मी कम्पोस्ट बनाते हैं। केचुएं मिट्टी को खेती योग्य बनाते हैं। इसलिए केचुओं को किसानों का मित्र कहा जाता है। बच्चों ने वर्मी कम्पोस्ट बनाने वाले केचुएं हाथ में लेकर देखे। साथ ही, जीवामृत बनाने की विधि को जाना, जो कि गुड़, गोमूत्र, गोबर आदि से मिलकर बनता है और आर्गेनिक खेती में खाद के रूप में छिड़काव किया जाता है। यह भ्रमण कार्यक्रम स्कूल शिक्षकों जसलीन कौर, तनिशा और शिवानी के मार्गदर्शन में पूरा हुआ।


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Garhninad Desk

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