संपादकीय: हिमालय से लौटा बुधू
गढ़ निनाद * 27 मई 2020
नई टिहरी। हवाओं पर प्रतिबंध हटने के बाद बुधू वायु बेग से हिमालय के उच्च शिखरों की ओर उड़ चला। आप तो जानते ही हैं कि बुधू को बक बक योग, हडप-गडप योग के साथ उड़न योग में भी महारत हासिल है। इसी दम पर बुधू को यकीन था कि एक दिन कोरोना को ढूंढ कर पकड़ लूंगा। लेकिन बुधू को आज सुबह ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो गया। कोरोना की जगह किसी और को पकड़ने की ठान ली। हुआ यह है कि सुबह नमक रोटी खाते समय बुधू की नजर नमक की चमकदार प्लास्टिक थैली पर पड़ गयी। रंग-बिरंगे अक्षरों से शोभित थैली से चमत्कारी किरणें बुधू की खोपड़ी में घुस गयी। घुस्सम घुस्सा के बीच अकल की खिड़की खुल गई। ध्यानमग्न हो गया। कोरोना नहीं इसके मारक रोग की दवा ढूंढने का योग है। हिमालय की ओर चलो। वहीं ऐसी चमत्कारी बूटी मिलेगी कि–।
तभी बुधिया ने झिंझोडा। वैसे तो मैं नाराज हो जाता। लेकिन आज गर्व हो रहा है। बुधिया ने एक दिन कोरोना खोज अभियान पर तंज कसा था बिरादरी वाले न जाने क्या क्या ढूंढ रहे हैं। उनके घर अन्न धन के भंडार हो गए। घर के लिए ना सही अपने लिए मुई दारू की एक आध पेटी ही ले आते। जो कमाए थोड़े पैसे उसमें खर्च करते हो,घर में सब्जी भाजी के काम आते।
तब बुधिया को समझाया कोरोना वायरस एक बार मेरी पकड़ में आ जाए, तब देखना क्या-क्या हो जाएगा। बिरादरी वालों की क्या बिसात। चीन तक की अकड़ निकल जाएगी। डोकलाम-फोकलाम सपने में भी नहीं सोचेगा। कोरोना को आतंकियों पर छोड़ दूंगा। पड़ोसी पाकिस्तान भारत का कम अपनी बेचारी बेबस जनता का बड़ा दुश्मन है। उसके शासकों की बुद्धि शुद्धि कोरोना से करवाना चुटकी भर का काम हो जाएगा।
बुधू को नोबेल पुरस्कार मिल जाएगा। न भी मिला तो कहीं पदवियां, पुरस्कार मिलना तय है। विश्व का सर्वश्रेष्ठ खोजी पत्रकार ‘पत्रकार शिरोमणि बुधू महाराज’ महामारी पकड़ धाकड़ ‘चमत्कारी श्री।’ सभी समस्याओं के समाधान कर्ता ‘महायोगी बुधू बाबाजी।’ अरबों खरबों की मोहमाया के बीच विरक्त ‘परम संत श्री बाबा बुद्धू।’ कोरोनाविद होना तो घर में ठहरा। तुम कोरोना विदुषी बुधिया। वाकी बेटे, बेटी, साला, जमाई को भी! त्याग मूर्ति बुधू को और क्या चाहिए।
बुधू आम बुधू की भांति बुधू ही है। परंतु बुधिया समझदार है। बोली खोजना ही है तो ईलाज खोजो। बताते हैं कि हिमालय में एक चमत्कारी बूटी है संजीवनी। मरे को भी जिंदा कर देती है।
हिमालय में तो न जाने क्या-क्या बूटियाँ हैं। लोग तस्करी करते हैं। दूर प्रदेश में कभी कभार पकड़े जाते हैं। तुम क्या चाहती हो मैं भी—। बुधिया चुपचाप चली गई।
आज चमत्कारी किरणों ने याद दिला दी। मन ही मन में बुधिया को सराहा। मौसम माकूल होने के लिए सरकार जी को धन्यवाद देकर हिमालय की ओर उड़ चला।
सहस्त्र ताल और खतलिंग के बीच एक छोटे से बुग्याल में एक झोपड़ी दिखी। नजदीक गया, देखा कोई साधू जैसा था। उसकी लम्बी दाढ़ी बाल। शायद यहां भी सरकार ने लॉक डाउन कर रखा था। अरे यह तो जटायु महाराज का बंशज हो सकता है। ये पुण्यात्मा लोक कल्याण के लिए संजीवनी बूटी का रहस्य जरुर बता देंगे। झोपड़ी के पास उतरने वाला था कि बुधिया की समझदारी भरी चेतावनियां याद आ गई। जटायु ना होकर कालनेभि हुआ तो–।
राम-राम! बुधू खोजी पत्रकार जरुर है, लेकिन हनुमान जैसा नहीं। बुधू उडन छू। सही सलामत वापस। आपके पास। संजीवनी की छोड़ो आस। खुद पर करो विश्वास। खुश रहो, खुशियां बांटो। इस रात की भी खुशनुमा सुबह होगी।
आपका बुधू