बुधू सलाह: जनता के लिए मास्क, नेताओं नौकरशाहों के लिए ‘मुस्के’
गढ़ निनाद न्यूज़ * 3 जून 2020
नई टिहरी: उत्तराखंड सरकार मास्क को अनिवार्य बनाने के लिए कानून बना रही है। यह घोषणा स्वागत योग्य है। सरकार की सुपर पावर ने घोषणा की है तो स्वागत करना ही पड़ेगा, नहीं तो बुधू जैसों को न जाने किन-किन तोहमतों, लांछनो के कटघरे में खड़ा किया जाएगा। मसलन खरदूषण, सूर्पनखा का भाई, दुश्मन का एजेंट, जमाती वगैरह। दो मील आगे जाकर स्वागत कर रहा हूं कि सरकार का यह निर्णय उत्तराखंड के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा।
सरकार ने अपने अफसरों को मास्क नीति बनाने का आदेश भी दे दिया है। उम्मीद है कि यह नीति बनने से पहले ही उन तक पहुंच जाएगी जिन तक इसे पहुंचना है। यह जरूरी है। नहीं तो चुगलखोर पूछेंगे अब तक जो हजारों चालान किए बिना मास्क वाले, किस कानून के तहत किए। बोलने दीजिए।
हमारे नीति निर्माता नीति बना रहे हैं। पहला काम तो यही होगा कि इतिहास के मील के इन पत्थरों का तुरंत टेंडर निकाला जाए। इन पत्थरों में क्या-क्या लिखा जाना है यह भी सरकार के नीति निर्माता जानते हैं। बुधू क्यों समय खराब करे।
कल्पना करने में क्या जाता है। ये मास्क किस रंग के होंगे, इस पर विवाद की गुंजाइश नहीं है। काले तो बिल्कुल ठीक नहीं लगते। सरकारें अब काली पट्टी की अभ्यस्त हो गई हैं। कोरोना को तो क्या फर्क पड़ना। सफेद जल्दी गंदे हो जाते हैं। हरे आसमानी भी ठीक नहीं लगते। रंग तो वही होना चाहिए जो सरकार मन भाए।
कपड़ा तो देसी रंग ढंग का होगा ही। लोकल- वोकल का जमाना आ गया है। रंग और कपड़े का चयन हो गया तो मास्क बनाने वाली कंपनी के चयन में अधिक समय खर्च क्यों करना पड़ेगा। सिर्फ दो ही शर्तें काफी हैं। बने कहीं भी मुहर मेक इन भारत की होनी चाहिए। यह काम आम व्यवसायी कंपनी जैसा नहीं है इसलिए कंपनी का नाम ‘ प ‘ अक्षर से शुरू होना चाहिए। सौ फीसदी पवित्र। कंपटीशन तो तब भी हो सकता है। इसलिए कुछ अतिरिक्त अनिवार्य गुण भी उन (संपादक जी बिन्दी का ख्याल रखें, भाई लोग आपको मास्को वालों का आदमी न ठहरा दें) मास्कों में होने चाहिए। वे मंत्र पूरित चमत्कारी, राख लीपित, जड़ी-बूटी पोषित और धक-धक टीवी चैनल्स विज्ञापित होने चाहिए। इससे जनता में श्रद्धा उत्पन्न होगी। वह अपनी बुद्धि खर्च किए बिना ही मास्कधारणी बन जाएगी।
यह तो ठहरा जनता मास्क! अपनी दूरदर्शी तत्वज्ञानी क्वॉरेंटाइन सरकार की कोरोना महामारी नाशक संभावित नीति का उत्पाद।
लेकिन जनता का भी फर्ज बनता है कि बदले में सरकार जी का ख्याल रखे। समस्या ये हैं कि सरकार को जब-तब जहां-तहां मुंह मारना पड़ता है। बोलना पड़ता है। घोषणा भी करनी पड़ती हैं। खंडन करना पड़ता है। अपना और अपने बड़ों का महिमामंडन करना होता है। ये तो सब ठीक है। पर जब अपनी बातें ही गले पड़ जांय
और खींसे निपोड़कर बात आई गई होने की संभावना न हो तो मुँह लुकाई भी करनी पड़ती है। इस काम के लिए मुस्के अच्छे हैं।
तो क्या करें। सबसे अच्छा उपाय है कि जनता सरकार को मुस्के बना कर भेंट करे। जिन लोगों ने खेती बाड़ी नहीं की उनको ‘ मुस्के ‘ समझने में शब्दकोष ढूंढने की जरूरत नहीं है। अब जब सरकार की रिवर्स पलायन की चरम अभिलाषा पूरी हो रही है। पलायन नीति आयोग-फायोग से नहीं सही कोरोना प्रकोप के डर से ही सही हो तो रही है। फिलहाल गावों में खेती किसानी से जो अनाज उगता है उसको चट करने का कष्ट बंदरो, जंगली सूअरों के जिम्मे है। गाय माता नगरों, बाजारों में कागज, प्लास्टिक खाये तो खाये। उसके नाम पर वोट भी कहां मिल रहे हैं।
मुस्कों का कारोबार पहाड़ में खूब चलेगा, फबेगा। रिंगाल तो मिलने से रही। भीमल की छालों से लेकर कंडाली,भांग के रेशों तक सभी मुस्के बनाने के काम आएंगे।
भेड़ बकरियों की ऊन से उत्तम कोर्ट के मुस्के बन सकते हैं। भविष्य में पहाड़ पर जूट, कपास की खेती की जबर दस्त संभावना होगी। यह बारहमासा 365 दिन की जरूरत होगी। इसलिए सबसे बड़ा कारोबार होगा।
नेता लोगों को अनावश्यक नहीं बोलना पड़ेगा। एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के मौके मुस्के बंद कर देंगे। घूसखोरी, कमीशनखोरी, चोरबाजारी, जमाखोरी, चापलूसी अपने आप बंद हो जाएगी।
सबके मुँह मुस्कों में कैद रहेंगे। संक्रमण का डर रहेगा, इसलिए मुस्कों की संख्या में हेराफेरी नहीं होगी। सरकार की कंपनी गारंटी दे न दे, गुणवत्ता की गारंटी जनता को देनी ही पड़ेगी। कुछ अतिरिक्त कमाई में घर बैठी छोटे बड़े सरकार जी की अपनी जनता भी छूट न देगी। पड़ोसन पर रौब जमाने से अच्छा इमानदारी से जो मिल जाता है उस पर संतोष ही अच्छा। स्वस्थ सुखी तो रहेंगे।
एक समस्या जरूर होगी कि तब पेशे से चोर- लुटेरों की पहचान मुश्किल हो जाएगी। लेकिन उन्हें झेला जा सकता है। उनकी संख्या तो वैसे भी बहुत कम होती है।
तो सरकार जी हो जाए जनता मुस्कान निर्माण, दान-प्रदान अनिवार्य नीति। इसका प्रभावशाली संभावित विज्ञापन कितना सुंदर कल्पनाशील होगा। मुस्काधारी मंत्री जी की आंखें मुस्कुरा- मुस्करा कर कह रही हैं, हमारा उत्तराखंड सहकारिता से आत्मनिर्भर उत्तराखंड।
सौजन्य से अंट संट बैंक।
प्रधान जी! आप खुश तो होंगे ना, इस संकट काल में मुस्कुराओ बहन-भाइयों।
बुधू हर बुधवार आपके समक्ष प्रकट होता रहेगा। स्वस्थ रहें,सतर्क रहें, मुस्के पहने रखिये, घर पर रहिए, सुरक्षित रहिए।
आपका बुधू।