पहाड़ की प्रतिभा: लाॅकडाउन में रिंगाल से बनाया नेपाल के ‘पशुपतिनाथ मंदिर’ का डिजाइन
राजेन्द्र की बेजोड़ हस्तशिल्प कला का है हर कोई मुरीद..
गढ़ निनाद न्यूज़* 24 जून 2020
चमोली से अतुल साह: पहाड़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कहा जाता है की कला और कलाकार को सरहदों के बंधन में नहीं बांधा जा सकता है। राजेन्द्र नें उक्त कहावत को चरितार्थ करके दिखाया है। राजेन्द्र कभी भी पशुपतिनाथ मंदिर नहीं गये, केवल फोटो में ही मंदिर देखा। लेकिन राजेन्द्र की प्रतिभा ऐसी है की हजारों किलोमीटर दूर स्थित मंदिर को बिना देखें हुये भी उन्होंने उसे आकार देकर जींवत बना डाला।
सीमांत जनपद चमोली के किरूली गांव के बेजोड हस्तशिल्पि राजेन्द्र बडवाल नें पहाड़ की हस्तशिल्प कला को नयी पहचान और नयी ऊँचाई प्रदान की है। राजेंद्र नें लाॅकडाउन का सदुपयोग करते हुए विभिन्न मंदिरों के डिजाइन तैयार किये हैं। इसी क्रम में उन्होंने पडोसी देश नेपाल के काठमांडू में स्थित प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर का रिंगाल और बांस से हुबहु डिजाइन बना कर हर किसी को अचंभित कर दिया है।
कहाँ है पशुपतिनाथ मंदिर! क्यों है प्रसिद्ध !
विश्व में दो पशुपतिनाथ मंदिर प्रसिद्ध हैं। एक नेपाल के काठमांडू का और दूसरा भारत के मंदसौर का। दोनों ही मंदिर में मुर्तियां समान आकृति वाली है। नेपाल का मंदिर बागमती नदी के किनारे काठमांडू में स्थित है और इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। यह मंदिर भव्य है और यहां पर साल भर देश-विदेश से पर्यटक मंदिर के दर्शनार्थ आते हैं। मंदिर में भगवान शिव की एक पांच मुंह वाली मूर्ति है।
पशुपतिनाथ विग्रह में चारों दिशाओं में एक मुख और एक मुख ऊपर की ओर है। प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमण्डल मौजूद है। इस मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के चार दरवाजे बने हुए हैं। वे चारों दरवाजे चांदी के हैं। मंदिर प्रत्येक दिन प्रातः 4 बजे से रात्रि 9 बजे तक खुला रहता है। केवल दोपहर के समय और साय पांच बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है। पूरे मंदिर परिसर का भ्रमण करने के लिए 90 से 120 मिनट का समय लगता है। पशुपतिनाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है।
महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। इसलिए भगवान शंकर अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे। पांडव उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी भैंसे पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस भैंस पर झपटे, लेकिन भैंस भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। जो बाद में धरती में समा गए लेकिन पूर्णतः समाने से पूर्व भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ कहा जाता है।
कौन है राजेन्द्र बडवाल !
राजेंद्र बडवाल विगत 10 सालों से अपनें पिताजी दरमानी बडवाल जी के साथ मिलकर हस्तशिल्प का कार्य कर रहें हैं। उनके पिताजी पिछले 45 सालों से हस्तशिल्प का कार्य करते आ रहें हैं। राजेन्द्र पिछले पांच सालों से रिंगाल के परम्परागत उत्पादों के साथ साथ नयें नयें प्रयोग कर इन्हें मार्डन लुक देकर नयें डिजाइन तैयार कर रहे हैं। उनके द्वारा बनाई गयी रिंगाल की छंतोली, ढोल दमाऊ, हुडका, लैंप शेड, लालटेन, गैस, टोकरी, फूलदान, घौंसला, पेन होल्डर, फुलारी टोकरी, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोपी, स्ट्रैं, वाटर बोतल, बद्रीनाथ, केदारनाथ, पशुपतिनाथ मंदिर सहित अन्य मंदिरों के डिज़ायनों को लोगों नें बेहद पसंद किया और खरीदा। जिससे राजेन्द्र को अच्छा खासा मुनाफा भी हुआ। राजेन्द्र बडवाल की हस्तशिल्प के मुरीद उत्तराखंड में हीं नहीं बल्कि देश के विभिन्न प्रदेशों से लेकर विदेशों में बसे लोग भी है।
अगर आपको भी राजेन्द्र बडवाल द्वारा बनाये गए रिंगाल के उत्पादों पसंद हो और इसे मंगाना चाहते हैं तो आप सीधे सम्पर्क कीजिएगा.. ।
राजेंद्र बंडवाल — 87550 49411 पर।