राजनीति और लोण-लोट्टया
संपादकीय: राजनीति और लोण-लोट्टया
अभी अभी उत्तराखंड के पंचायत चुनाव समाप्त हुए हैं। अब जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख आदि के लिए 6, 7 नवंबर को चुनाव भी होना है। पंचायत चुनावों में प्रत्याशियों या उनके कार्यकर्ताओं ने जोर शोर से हर हथकण्डे अपनाए होंगे। पहाड़ के दूरदराज के इलाकों में स्थानीय स्तर पर जो छोटे चुनाव होते हैं उनमें सदियों से एक परम्परा चली आ रही है और वह है नमक-लोटा (ल्वाण-लोठया) परंपरा। इसके तहत लोटे में नमक डाल कर देवी देवताओं के समक्ष कसम दिलाई जाती है । जो नेता सबसे पहले गांव में आकर इस प्रक्रिया को कर लेता है तो फिर वह आस्वस्थ हो जाता है कि अब कोई माई का लाल मेरे वोट नही काट सकता। मैं मानता हूँ कि यह परंपरा कुछ ही प्रतिशत इलाकों में सही पर आज भी जारी है।
मैं मानता हूं कि वर्तमान में शिक्षा और जागरूकता के साथ उसका प्रचलन धीरे धीरे कम होता जा रहा हो, लेकिन विविधताओं के इस देश के कई हिस्सों में चुनावों में जीत हासिल करने के लिए प्रत्याशी या उनके कार्यकर्ता अनेक हथकण्डे अपनाते हैं। इनमें यह सबसे आसान और कम ख़र्चीला लगता है।
वैसे तो छोटे चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए बोतल, नक़दी, राशन, प्रेशर कुकर, बेटी की शादी के लिए मंगलसूत्र व साड़ी आदि अनेक ऐसे पारंपरिक रास्ते हैं जिन पर चलकर नेता, कार्यकर्ता या उसके रिश्तेदार आम लोगों का विश्वास जीतने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और उन्हें लगता है कि हम चुनाव जीत जाएंगे। उस समय के माहौल से तो यही लगता है। भेंट स्वीकार की जाती है, सदभावना भेंट भी ली जाती है, लेकिन जब मतदान की बारी आती है तो बैलेट बॉक्स तक जाते जाते कईयो का मन बदल जाता है और मोहर कहीं और लग जाती है। बाद में कुछ को पछतावा भी होता होगा लेकिन ‘अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत’।
नमक-लोटा परम्परा केवल उत्तराखंड में ही नही हिमांचल के कुछ जिलों में युगों-युगों से परम्परागत तौर पर चल रही है। सिरमौर और शिमला जिले की दुर्गम पहाड़ी इलाकों में लोक मान्यताओं के रूप में आज भी विद्यमान है। बताते हैं कि नमक-लोटा परम्परा के तहत सामूहिक रूप से कसम खायी जाती है कि हम अमुक को समर्थन देंगे। स्थानीय देवताओं को साक्षी मानते हुए परम्परा चली आ रही है। स्थानीय स्तर पर यह फॉर्मूला ज्यादा फिट बैठता है। वैसे पंचायत चुनाव में एक वोट का महत्व बहुत ज्यादा होता है इसलिए परिवारों पर ध्यान दिया जाता है, अगर लोण-लोट्या हो गया तो नेता आस्वस्थ हो जाता है, कि उसके वोटर को अब कोई डिगा नहीं सकता।