कथा: दशमोत्तर छात्रवृत्ति घोटाला

गत वर्ष सितंबर में नैनीताल उच्च न्यायालय ने एससी, एसटी और ओबीसी के छात्र-छात्राओं को दी जाने वाली दशमोत्तर छात्रवृत्ति में हुई अनियमितताओं की जांच का आदेश दिया था। जांच के लिए एस.आई.टी. का गठन किया गया।
जांच शुरू होने के कुछ दिनों बाद यह प्रकरण मीडिया की सुर्खियों में छा गया। कई जिलों में मुकदमें दर्ज किए गए। कुछ गिरफ्तारियां भी हुईं। जांच का सिलसिला जारी है।
छात्रवृत्ति समाज कल्याण विभाग देता है। इसलिए इसे विभाग का घोटाला ही आमतौर पर मान लिया गया। जबकि पकड़ में आने वाले कई फर्जी शिक्षण संस्थान और उनके संचालक भी हैं। पहला सवाल तो यही है कि उत्तराखंड में इस तरह के संस्थान खुल कैसे रहे हैं, किसकी शह पर खुल रहे हैं।
गौर से देखें तो यह गड़बड़झाला हमारी व्यवस्था की उसी कमजोरी का एक और उदाहरण है, जो उत्तराखंड के लिए घातक सिद्ध हो रही है।
इस प्रकरण के कई पक्ष हैं। हम न किसी के पक्ष न विपक्ष में हैं। उन तमाम लोगों में हैं जो चाहते हैं कि पूरी सच्चाई सामने आये। दोषी कोई भी हो उसको तो सजा मिलनी ही चाहिए, हर हाल में मिले। लेकिन दोषी को बचाने के चक्कर में निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। कमज़ोर निर्दोष लोग पीड़ित न हों इसका ख्याल रखा जाना चाहिए।
हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी भ्रस्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के पक्षधर हैं। यह प्रकरण समाज के कमजोर तबके के हितों से लेकर शिक्षा व्यवस्था तक जुड़ा है। इसलिए इसकी जांच पूरी दक्षता, निष्पक्षता और सार्थकता से होनी चाहिए।
इसी उद्देश्य से “गढ़ निनाद” आज से कथा: दशमोत्तर छात्रवृत्ति घोटाला शुरू कर रहा है। सत्यमेव जयते हमारा विश्वास है।
– सम्पादक