कथा: दशमोत्तर छात्रवृत्ति घोटाला (भाग-13
सामाजिक जिम्मेदारी (?)
विक्रम बिष्ट*
शिक्षा के क्षेत्र में ये अपराध हमारे समाज की जागरुकता और नागरिक कर्तव्य बोध पर भी सवालिया निशान हैं । जरा ठहर कर सोचें-
जैसा कि गत वर्ष दिसंबर में चंपावत पुलिस ने मीडिया को बताया कि हरिद्वार के चैरब जैन ने 26 जनवरी 2015 में बनबसा में देवभूमि विद्यापीठ नमक शिक्षण संस्थान खोला। छात्रों को दाखिला और बैंक खाता खोलने के लिए सिर्फ दो बार वहां बुलाया। कुछ दिन बाद सामान समेट कर चलता बना।
सीधा सा सवाल है कि स्थानीय लोगों को जरा सा भी संदेह नहीं हुआ? जब हम मकान किराए पर देते हैं तो मकान मालिक किराएदार के बारे में जरूरी जानकारी तो लेते ही हैं। आसपास के लोग भी नये वाशिंदे के बारे में जिज्ञासु रहते हैं। यह एक व्यक्ति या परिवार का मामला नहीं बल्कि शिक्षण संस्थान का मामला है। जिसमें भी फर्जी तरीके से ही सही छात्रों को प्रवेश दिया गया है।
स्थानीय खुफिया तंत्र, प्रशासन, समाज कल्याण और शिक्षा व्यवस्था से जुड़े कारिंदे स्वंय को जागरुक मानने- समझने वाले नागरिक और सहस्त्र चक्षु मीडिया किसी ने वास्तविकता जांचने-परखने की कोशिश नहीं की। उत्तर प्रदेश के हापुड़ से आये कुछ लोग रानीखेत जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील कस्बे में पहुंचते हैं। एससी ओबीसी के डेढ़ दर्जन छात्रों को होटल में मैनेजमेंट की डिग्री निशुल्क देने का झांसा देकर छात्रवृत्ति के 14 लाख से अधिक रुपया हड़प जाते हैं। किसी को खबर नहीं लगती? दोनों प्रकरण 2015 के हैं।
बैंकों की भूमिका संदेह के घेरे में आती है। रानीखेत में शाखा प्रबंधक इंडियन ओवरसीज बैंक के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया है। स्वामी पूर्णानन्द कॉलेज के लाभार्थी छात्र छात्राओं के अल्मोडा अर्बन कोऑपरेटिव बैंक की मुनि की रेती शाखा में एक ही हस्त लेख से खाते खोले गए हैं। एसआईटी कि शुरुआती जांच रिपोर्ट में यह बात दर्ज है।
और सबसे बड़ा सवाल। छात्रवृत्ति के लाभार्थी छात्र छात्राओं में अधिकांश वयस्क हैं। स्नातक और पीजी शिक्षा वाले हैं। इनके पास मोबाइल फोन हैं। फिर ये ठगी करने वालों के झांसे में कैसे आ गए। क्या यह हमारी शिक्षा का खोखलापन नहीं है? क्या यह हमारी नैतिक फिसलन का नयी पीढ़ी पर बढ़ता प्रभाव है। क्या यह हमारे नीति नियंताओं की पावन लक्ष्यों पर भारी पड़ रही आत्ममुग्ध प्रचार नीति से गहरा रहे अंधकार का स्वाभाविक परिणाम है?
जारी—-
अगले अंक में पढ़िए– कथा: दशमोत्तर छात्रवृत्ति घोटाला (भाग-14)