डुबायेगा नीति-निर्णय का तदर्थवाद
 
						विक्रम बिष्ट
गढ़ निनाद न्यूज़ *29 अक्टूबर 2020
नई टिहरी। भ्रष्टाचार के नित नये रहस्योद्घाटन, आरोप-प्रत्यारोप उत्तराखंड की छवि खराब कर रहे हैं। जनता में सत्ता प्रतिष्ठान के प्रति अविश्वास की भावना गहरा रही है। जो वास्तव में भ्रष्ट हैं उनके मजे ही मजे हैं।
उत्तराखंड राज्य में बदलाव क्या आया है? बेशक सरकार, शासन में कुर्सियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। बजट में भी इसी अनुपात में इजाफा हुआ है। विभिन्न तरह के नए-नए संस्थान खुले हैं। बड़ी संख्या में अपनों को खपाने के लिए जहां जरूरत थी, उनकी अनदेखी की जाती रही है। इसलिए नीति निर्माण में अनीति है। यह अनीति ही भ्रष्टाचार, योजनाओं के क्रियान्वयन की गड़बड़ियों और दफ्तरी काहिली का मूल कारण है। समरथ को नहीं दोष का घनघोर तरीके से पालन होता आया है। मार असमर्थ को पड़ रही है।
समाज कल्याण विभाग के ढांचे का उदाहरण प्रत्यक्ष है। यूपी में समाज कल्याण की विभिन्न योजनाओं के लिए चार विभाग थे। विकलांग, अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और समाज कल्याण। उत्तराखंड में बाकी तीनों को समाज कल्याण में विलीन कर दिया गया। लेकिन सिर्फ जिला और फील्ड स्तर पर यह नीति निर्णय और क्रियान्वन के बीच का फासला है जो अन्याय, भेदभाव, मनमानी और भ्रष्टाचार के अवसर पैदा करता है।
बीते दो दशकों में यह नीति में हताशा गहराई है। सरकारी उपक्रमों के समाज कल्याण विभाग की तरह उल्टे पिरामिड जैसे ढांचे हैं। यहां बजट ऊपर से नीचे की ओर रिसता है। जमीनी स्तर तक पहुंचने तक सूख भी जाता है। ऊपर वाले और ज्यादा माला माल । नीचे हाल बेहाल। जनता जानती है। शोर शराबा तो दिखावा मात्र है।
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