कविता: “भारत भूमि” 19 नवंबर राष्ट्रीय एकता दिवस पर विशेष
डॉ0 सुरेंद्र दत्त सेमल्टी
गढ़ निनाद समाचार * 19 नवम्बर 2020
समझते हैं सम सभी, कहते नहीं जीत हार,
धर्म-जाति की दीवार, में नहीं कोई सवार।
दुनिया के सारे नर, मानते इसे हैं घर,
सजाते-संवारते, इसे हैं सभी नारी-नर।
हिंदू-मुसलमान, मानते इसे हैं शान,
जैन-बौद्ध- सिक्ख सब, इसपे दे देते जान।
नदियों का पवित्र जल, बहता है हर पल,
इनके प्रताप से सुखद होता है कल।
विद्युत जल क्रीड़ा खेती, यहां की सरिता है देती,
अनेक कारखाने, इसका लाभ है लेती।
हिमालय नगाधिराज, सेवा में खड़ा है आज,
उसके अतीत पर, भारत भूमि को है नाज।
राम रहीम कृष्ण गुरु नानक की है यह धरा,
थोड़ी भी सके-शंका न करे ना कोई भी जरा
इस भारत भूमि पर अधिकार है बराबर,
चाहे किसी भी धर्म जाति, क्षेत्र का हों नारी नर।
यहां के तीज त्यौहार, आते हैं जो हर बार,
मनाते हैं एक साथ , बधाइयां बार-बार।
खाते-पीते एक साथ,परस्पर करते हैं बात,
रहते हैं साथ-साथ, दिन हो चाहे रात।
ऊंच नीच छुआछूत देखता ना यह भूत,
देश की अखंडता को, एक है सभी सपूत।
चाहे कोई कुछ कहे, माला को मनके हैं हम,
देश को बचाने का, रखते सभी है दम।
टूट कर के हम कभी, बिखर नहीं पाएंगे,
इस धरा को छोड़, अन्यत्र नहीं जाएंगे।
गुलदस्ते के से फूल, हैं यहां के सभी लोग,
कर्म जो करता है जैसा, वैसा बनता है जोग।