तीसरा विकल्प या सत्ता में हिस्सेदारी (चार)
गढ़ निनाद समाचार* 20 जनवरी 2021
नई टिहरी।
पहली विधानसभा में उक्रांद ने मुद्दा आधारित क्षेत्रीय दल की सशक्त भूमिका नहीं निभाई। 2007 के चुनाव में इसकी सीटें घटकर 3 रह गयी। दल के सबसे कद्दावर नेता काशी सिंह ऐरी भी चुनाव हार गए। 1980 में नारायण दत्त तिवारी जैसे दिग्गज नेता को कड़ी चुनौती देने वाले डॉक्टर नारायण सिंह जंतवाल भी दूसरी बार विधानसभा नहीं पहुंच सके। नरेंद्र नगर के विधायक ओम गोपाल रावत के दबाव में उक्रांद ने भाजपा को सरकार बनाने में मदद की। दिवाकर भट्ट मंत्री बने। दल ने सशर्त समर्थन दिया था। लेकिन सत्ता में साझेदारी के दौर में वह उन शर्तों को भूल सा गया। इनमें एक शर्त स्थाई निवास व्यवस्था समाप्त कर मूल निवास अनिवार्य करने की थी। स्थाई राजधानी, परिसंपत्तियों का बंटवारा अपना भू-कानून सहित मुद्दों पर अमल के लिए दबाव बनाने के लिए उक्रांद सरकार से बाहर आने का जोखिम उठाता, तो संघर्ष के लिए उसे युवाओं की बड़ी फौज और जन समर्थन मिलता।
लेकिन दल के भीतर एक राय बनाकर ठोस निर्णय लेने की बजाय भट्ट और ओम गोपाल रावत के निष्कासन की बचकानी हरकत ने उक्रांद की स्थिति हास्यास्पद बना दी।