रैणी: निरक्षर गौरा और चिपको पुराण
 
						विक्रम बिष्ट
गढ़ निनाद समाचार।* 19 फरवरी 2021।
नई टिहरी। निरक्षर निष्कपट गौरा के पास शब्दाडंबर नहीं था। उसने कोई नारा नहीं लगाया। भाषण नहीं दिया। बस अपनी छोटी सी मंडली के साथ अबोले वृक्षों और ख़ूँख़ार संहारक हथियारों के बीच डटकर खड़ी हो गई। प्राणों की परवाह किए बिना। वनों से आत्मीय रिश्ते ने उनको निडर बना दिया था। क्रांतियों के श्रेय चाहे जो ले ,असली ताकत तो यह बलिदानी भावना होती है।
ड़रना विनाशक हथियार धारियों को था वे भाग खड़े हुए। यह खबर दूर दूर तक फैल गयी। टिहरी भी पहुंची। पत्रकार कुंवर प्रसून ने सुंदर लाल बहुगुणा जी को भी दे दी। फिर घटना खबरों में बदल गई। दूसरी तरफ रैणी के सफल आंदोलन से प्रेरणा लेकर अन्य क्षेत्रों में भी व्यावसायिक वन कटान के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गए।
साथ ही साथ श्रेय की होड़ भी। जाहिर है गौरा उस दौड़ में शामिल नहीं थी। बेशक उसके काम को नाम दे दिया गया था चिपको आंदोलन! सर्वोदयियों से लेकर वामपंथियों तक। उत्तरकाशी और नैनीताल के बीच। व्यापारिक मीडिया घरानों से लेकर लावी बाजों तक। …..जारी।
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