बाल कविता ” होली “
डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
गढ़ निनाद समाचार।
एक साल मे फिर आई होली ,
आकर सबसे कुछ यों बोली ।
खुशियों का लेकर के पिटारा ,
पहुँची हूँ हर घर लेकर सारा ।
तरह – तरह के मनमोहक रंग ,
लाई हूँ खुश होकर अपने संग ।
गुजिया लड्डू पेड़े मिठाई ,
अपने संग मे बहुत हूँ लाई ।
जब इच्छा हो तब आ जाना ,
जिसको चाहो उसको खाना ।
दादी – दादा नानी – नाना ,
और भी सबको साथ मे लाना ।
कोरे – गीले मनमोहक रंग ,
इन सबको भी लाई हूँ मैं संग ।
गुब्बारे और सुन्दर पिचकारी ,
मैं लेकर आई हूँ बहुत सारी ।
बाँटूँगी सब कुछ सबको बराबर ,
मेरे लिये एक समान सभी नर ।
जाति – धर्म से मैं कोषों दूर ,
एक सा प्यार सबको भरपूर ।
ढोल – नगाड़े संग नाचो – गाओ ,
आपस मे रंग प्रेम संग लगाओ ।
फूहड़ गीत शराब से दूर रहें सब ,
इससे सम्मान समाज देगा तब ।
/// 2 ///
” खेलो सब रंगों के संग “
बासंती रंग मे आकर होली ,
खुश होकर के सबसे बोली ।
जरा देखो तो धरा गगन ,
सबके सब दिख रहे मगन !
फूल खिले हैं चारों ओर ,
देखकर नृत्य करता मनमोर ।
पवन भी है जी को भाती ,
जब खुशबू संग पास आती ।
पेड़ों पर चिड़ियाँ रही चहक ,
चारों तरफ फूलों की महक ।
खेलो-कूदो सब रंगों के संग ,
करें न कभी किसी को तंग ।
गाओ – नाचो मिलकर साथ ,
रहे न अन्तर धर्म न जात ।
समझें सब हम बहिन – भाई ,
बीच मे रह न सके जो खाई ।
कुविचारों की होलिका जलायें ,
सुविचार घर – घर में फैलायें ।
बर्फी गुजिया लड्डू खाओ ,
तरह – तरह के रंग लगाओ ।
दिल खोलकर होली मनाओ ,
फिर कामों मे मन लगाओ ।
/// 3 ///
” होली का संदेश “
होली के हुड़दंग से ,
बचे रहें सब बाल ।
लापरवाही से सदा ,
हो जाते हैं कुहाल ।।
फूहड़ गीत-नृत्य से ,
रहें सदा सब दूर ।
संस्कार बुरे हो गये ,
जीवन चकना चूर ।।
नकली रंग शराब की ,
पड़े न तन पर छाया ।
संकट से मानव जूझता ,
इसकी है ऐसी माया ।।
अशुद्ध मिठाई कभी ,
रखें न अपने हाथ ।
उसको खाने पर सदा ,
बिगड़ जाती है बात ।।
ऐसा काम करें नहीं ,
जिससे हो बदनाम ।
बोलें ऐसे बोल सदा ,
ऊँचा हो जो नाम ।।
—जारी।