Ad Image

जल रहा जंगल

जल रहा जंगल
Please click to share News

-डा. दलीप सिंह बिष्ट

वण फुक्याली पोथळा फुक्याली, कनु निर्बान्टु ऐगी।

विनाशकाल विपरीत बुद्धि, तब इन हाल ह्वेगी।।

जगा-जगा आग लगाणा, पूछणा सरकार ख्या कनी।

व बुन्नी सब्बी तैयारी ह्वेगी, पर वण फुकेणा उन्नी।।

याक डाळा अर जीव मान पर, बचणू होयूं मुश्किल।

जैव-विविधता तबाह कन्ना जू, पकल्ड़ा होया दुश्कर।।

नदी बगणी सब्बी यख बिटी, पर पाणी कखी नीन।

वण सब्बी साफ कन्ना, पाणी कखी मिलदू नीन।।

वण फुकण पर रात दिन लग्या, बुन्ना गर्म ह्वेगी।

तबी त प्रकृति अपणू, विकराल रूप दिखौणी।।

सर्दी-गर्मी कू पता नी, कू मौसम कबरी औणू।

बिना मौसम बरखा बरखणी, तबाही कू मंजर होणू।।

अब्बी वक्त छी, समली सकदै त समली ल्या।

जब बर्बादी ह्वे जाली, तब हमसी ह्वाण क्या।।

वण फुक्याली पोथळा फुक्याली, कनु निर्बान्टु ऐगी।

विनाश काल विपरीत बुद्धि, तब इन हाल ह्वेगी।।


Please click to share News

Govind Pundir

Related News Stories