नई टिहरी-2 “मिनी स्विट्जरलैंड” उदास सा क्यों
*विक्रम बिष्ट*
नई टिहरी। बहरहाल ठेकेदार जी जब आये तो उनके सरपरस्त कल्पनाथी कुनवा साथ था। सेना के रिटायर्ड ब्रिगेडियर, कर्नल पानी भरते थे। टिहरी के पढ़ाकू अच्छे खासे युवाओं से लेकर … सहायक आदि नौकरियों में भर्ती किए गये।
नई टिहरी को स्विट्जरलैंड बनाने से पहले लुटियन की दिल्ली से परिचित करवाना जरूरी था। यहां चुलूखेत के आसपास जगह है, जहां पीने का पानी है। वह अब डाइजर के नाम से जाना जाता है । ढाइजर भी बोलते हैं। फिलहाल कोरोनाइजर नहीं बोलते हैं।
सड़कें तो खर्रामा-खर्रामा बन रही थी। चौराहों पर मॉडर्न आर्ट की मुण्डियां बड़ी तेजी से बिठाई सजाई गई थी। समय के साथ अब उनकी शहादत स्थल पर शिवजी से लेकर साईं जी, गणेश जी तक भगवान विराजते हैं।
बहरहाल, हरिकथा की कथा अंनत। टिहरी की कथा कहते हैं- ये पता नहीं कि स्विजरलैंड में पानी है या नहीं। नई टिहरी में तो यह समस्या पहले से ही थी। स्विट्जरलैंड, थाईलैंड हमारे माननीय और अंग्रेजी गुलाम सभ्यता के प्रतिनिधि पानी(!) पीने जाते रहते हैं। टिहरी बांध बना तो.. चलिए फिर कभी।
समस्या थी कि पीने का पानी कहां से लाएं? छुटपुट स्रोत तक मशीनों ने बांझे कर दिए थे। टिहरी बांध भल्ड़ियाना के पास बन सकता था। यह भी बताया है। लेकिन वहां आरामदेह बस्ती नहीं हो सकती थी। टिहरी में संभव थी। लेकिन नई टिहरी तब जंगल जैसा था। यहां रहता कौन? टिहरी से काम चलाने के साथ भागीरथीपुरम बनाया गया। दोबाटा के पास करोड़ों रुपए की वातानुकूलित रूसी कॉलोनी थी। जो सोवियत संघ के साथ ही गायब हो गयी। भागीरथी भिलंगना के संगम के पास रहने वालों की करोड़ी टीनशेड खांडखाला के पास, जेपी कंपनी के काम आया कुछ दिन फिर कुछ दिन सरकारी शराब के ठेके के लिए काम आयी।
इतना बड़ा खर्च और समय! तो नई टिहरी को स्विट्जरलैंड बनाने में समय तो लगना ही था। चलते हैं अभी—पत्थर पूजते हुए।