नई टिहरी(4) “मिनी स्विट्जरलैंड”… जब तक नि ह्वे उजालू सबि ठगौण मैंन
*विक्रम बिष्ट*
नई टिहरी। बचपन में अपने गांव केपार्स की रामलीला में एक गढ़वाली गीत….सुना था। ‘ हर दिल नि होण प्यारी/ नेता होण मैन/ जब तक नि ह्वे उजालू/सबि ठगौण मैन। नाचते हुए गाते थे, प्राइमरी स्कूल के शिक्षक सुंदर सिंह कठैत । राजनीति पर इस कटाक्ष के प्रस्तोता कठैत गुरु जी को लोग पांड्या जी के नाम से ज्यादा जानते थे।
समय बीतता गया। राजनीति की वह विवशता ठगी से वीभत्स महाठगी बन गई। तब संचार के साधन थे नहीं , उसके बावजूद नेता लोग झूठ बोलने में हिचकते रहे होंगे। आज बेहयाई का दौर है।
इसलिए अपने और गिरोह स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रपंच रचे जाते हैं। इन प्रपंचों की बुनियाद भी छलावा होती है। इसलिए नेक सपने भी साकार नहीं हो पाते हैं।
दुनिया में कोई दूसरी जगह स्विट्जरलैंड जैसी या उससे बेहतर नहीं हो सकती, यह सृष्टि का नियम नहीं है। नई टिहरी में इसकी अपार संभावनाएं थी। थोड़ी सी सपना देखने की तमीज और उसको पूरा करने का संकल्प होना चाहिए था। लेकिन पूरा ध्यान तो पीढ़ियों तक समेट लेने पर केंद्रित था।
श्रीनगर से टिहरी पहुंचे राजा सुदर्शन शाह का घोड़ा भैरवनाथ ने रोका आया नहीं यह बात तो उनकी आत्मा ही जानती होगी । लेकिन तीन ओर नदियों से घिरी टिहरी नई राजधानी के लिए सबसे उपयुक्त ,सुरक्षित है यह तो सुदर्शन शाह और उनके सलाहकार समझ गए होंगे।
नदी के आर-पार जितना चाहे विरासत फैला सकते हैं। दिवंगत राजा प्रद्युम्न शाह गोरखाओं से लड़ते हुए चमुआ देहरादून की पराजय यात्रा सुदर्शन शाह के दिमाग में रही होगी। टिहरी बांध की कल्पना नहीं । इसलिए टिहरी शहर की ठोस बुनियाद रखी गई। भविष्य के बड़े सपने के साथ। …जारी ।