वन संरक्षण की मिसाल है टिहरी जिले का बमराडी गांव
राजपाल सिंह गुसाईं
नई टिहरी। जहां उत्तराखंड में सैकड़ों हेक्टर जंगल आग की भेंट चढ़ जाते हैं ऐसे में यह खबर बहुत सुकून देती है कि इस गांव में जिस बांज- बुरांश के जंगल में पिछले 50 वर्षों से कभी आग नहीं लगी, इसका श्रेय सरकार और प्रशासन को नहीं बल्कि इस गांव में रहने वाले 40 परिवार को जाता है । जी हम बात कर रहे हैं थौलधार विकासखंड के सुदूरवर्ती बमराड़ी गांव की।
इस गांव की पर्यावरण संरक्षण की अनूठी मिसाल है। आजकल गर्मियों में जब आग लगने की सबसे ज्यादा आशंका होती है तो गांव वाले रात-रात भर टोली बनाकर अपने बांज बुरांश के जंगलों की पहरेदारी करते हैं। आग लगने की घटनाओं से जूझ रहा प्रतिवर्ष वन विभाग इस गांव की सराहना करता है।
टिहरी जनपद के थौलधार विकासखंड की पट्टी जुआ अंतर्गत बमराडी गांव के वाशिंदे किसी सरकारी मदद के बिना मौजूदा 3 किलोमीटर वर्गाकार में फैले इस बांज बुरांश के जंगल की सुरक्षा गांव की महिलाएं और पुरुषों की टोली बारी बारी से जंगल की पहरेदारी करते हैं । गांव वालों ने जंगल की रक्षा की तो कुदरत ने बहुत कुछ दिया।
पहाड़ में आमतौर पर गर्मियों में पानी की दिक्कत होती है लेकिन यहां का कुदरती स्रोत कभी नहीं सूखता। गांव में लाइन तो पड़ी है लेकिन गांव वाले बांज बुरांश का ठंडा पानी पीने के लिए जंगल से सुबह श्याम एक घड़ा पानी जरूर लाते हैं।
गांव के पूर्व प्रधान शंभू प्रसाद सकलानी एवं सामाजिक कार्यकर्ता रमेश भट्ट कहते हैं पशुओं के लिए चारा, खाना बनाने के लिए लकड़ी सब कुछ इसी जंगल से प्राप्त हो जाता है। गांव में 30 प्रतिशत लोगों के पास दुधारू पशु हैं जिससे कि उस गांव के लोग बाजार से कभी दूध नहीं खरीदते।
प्रशासनिक सेवा से रिटायर्ड हुए गांव के उत्तम सिंह कोटवाल कहते हैं कि मुझे सबसे अच्छा अपना गांव, अपनी माटी लगती है। पर्यावरण से लेकर स्वच्छ जल, स्वच्छ हवा, दूध, खीर गांव में पर्याप्त मात्रा में मिलती है। उन्होंने कहा अब हमारे इस जंगल में चीड़ के पेड़ पनपने लगे हैं। यदि वन विभाग इनको काटने की अनुमति देता है तो यह जंगल आने वाले समय में एक मिसाल बन जाएगा।
लेकिन वन विभाग के अधिकारी इन चीड़ के पेड़ों की अनुमति नहीं दे रहे हैं। उधर वन विभाग के राजि अधिकारी आशीष डिमरी गांव वालों को बधाई तो देते हैं, लेकिन बांज बुरांश के जंगल में चीड के बड़े पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं देते हैं। हां छोटे पेड़ गांव वाले उखाड़ सकते हैं।