बुधू : आ गए लुटेरे ‘फ्री’ वाले
लो आ रहे हैं फ्री वाले। सब कुछ फ्री। वैसे तो उत्तराखण्ड फ्री में मिला है । भाजपा वाले याद दिलाते रहते हैं अटल जी ने दिया है मोदी जी संवारेंगे। 7 साल से संवार रहे हैं । 5 साल में तीन तो मुख्यमंत्री दिए हैं फ्री में।
हजारों लोगों ने अपना भविष्य दांव पर लगा उत्तराखंडियों को एहसास कराया कि यह पहाड़ फ्री का नहीं है । हमारे हाड मांस के पुरखों ने अथक परिश्रम से बसाया है। हम देश में किसी से कम नहीं हैं । हम अपना राज चला सकते हैं। भाग्य लिख सकते हैं ।
उनकी मेहनत रंग लाई । 1994 में लोगों ने इस सोच को अपना सपना बनाया । सड़कों पर उतर आए। शासन के आसुरी जुल्म से रूबरू हुए। राजनीति का नंगा नाच देखा। मुफ्त में अपने लिए राजनीतिक जमीन हथियाने वालों का ग्रुप एजेंडा समझ नहीं पाए, बिखरे, टूटे, 42 शहादतें दीं । लेकिन उसका क्या ? राज्य तो अटल जी ने दिया फ्री में । साथ में फ्री का सीएम भी।
कांग्रेस तो राष्ट्रीय पार्टी है वह भी क्यों पीछे रहती। उसने भी फ्री में पहला सीएम दिया। लाल बत्तियों वाली फ्री बारात सजाई गई। विकास की धारा तो बहनी ही थी ।
20 साल में 11 बार सरकारों ने उत्तराखंड को सर्वसम्पन्न बनाने की शपथ ली। नहीं बना सकीं। स्थाई राजधानी नहीं बनी। भावी पीढ़ियों के लिए रोजगार के दरवाजे बंद करने वाली स्थाई निवास नीति स्थाई बना दी । ना रहेंगे पहाड़ी न रहेगा पहाड़ीपन, तो अपने आप ही शहीदों के सपने साकार हो जाएंगे । खास बात यह कि शहीदों के सपने भी इन लंगडीबाज नेताओं को आते हैं।
लेकिन दिल्ली वाले तो उत्तराखंडियों की हालत दुकानों के आगे टुकड़ों के लिए खड़े …जैसी मानते हैं । हालांकि वे अपनी असलियत ही बता रहे हैं। अन्ना हजारे के आंदोलन के टुकड़ों पर पलने वाले ? टिहरी का पानी मुफ्त पीने वाले और सारे देश का खून चूसने वाले । उनको लगता है कि उत्तराखंड में मुफ्तखोरी का जादू चलेगा। दिल्ली उत्तराखंड के मुकाबले कितनी बिजली पैदा करती है, जरा बताओ तो फ्री देने वालों !
बुधू को लगता है कि आने वाले 2022 में सब कुछ फ्री.. फ्री.. फ्री.. मिलेगा । लेकिन बुधिया समझदार है, बोली ‘जतो नाम ततो गुण’ तुम वास्तव में बुधू हो और बुधू ही रहोगे। अरे ये कुछ भी फ्री देने वाले नहीं हैं केवल चुनावी शिगूफा है। हमारा वोट भी फ्री में ले जाएंगे और ठाठ करेंगे। बुधू ने मुंडी हिलाई बोला तर्क कहती हो बुधिया। ये सब लुटेरे हैं।