भू-कानून को लेकर जंतर मंतर पर हुए धरने का हुआ देशव्यापी असर-किशोर
25 जुलाई को जौल में तय होगी आगे की रूप-रेखा
नई टिहरी। वनाधिकार आंदोलन के प्रणेता व संस्थापक किशोर उपाध्याय ने कहा है कि वर्तमान संसद सत्र में केंद्र सरकार व संसद का ध्यान वनों पर पुश्तैनी अधिकार देने व भू-क़ानून बनाने के लिये ध्यानाकर्षण धरने का देशव्यापी असर हुआ है।
कोरोना की दूसरी लहर में संसद पर इस तरह के कार्यक्रमों के प्रतिबंधों के बावजूद उत्तराखंड के सामाजिक संगठनों ने जंतर-मंतर पर उपवास रखा और उसका असर यह हुआ कि अब सरकार को वहां पर अन्य को भी धरने-प्रदर्शन की अनुमति देनी पड़ी।
पूर्व विधायक उपाध्याय ने आशा व्यक्त की कि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार वनों पर आश्रित समुदायों के साथ न्याय करेंगी।
उपाध्याय ने कहा कि उत्तराखंड का लगभग 93% भाग पहाड़ी है और लगभग 7% तराई व मैदानी है।लगभग 72% भूमि पर वन विभाग का कब्जा है।
लगातार प्रदेश की कृषि भूमि घट रही है।
अब उत्तराखंडियों के सामने कुछ समय के उपरान्त नयी चुनौती आने वाली है।
लोक सभा और विधान सभाओं का परिसीमन होना है।पहाड़ी राज्य के अवधारणा भविष्य में समाप्ति की ओर लगती है।
इसलिये इस समय ज़ब विधानसभा के चुनाव सन्निकट हैं राजनैतिक दलों पर वनाधिकारों, भू-कानूनों और परिसीमन के मुद्दों पर दबाब बनाने की ज़रूरत है।
भू-क़ानून की बात समग्रता से होनी चाहिये, मात्र 9% भूमि की नहीं।
आभासी भूल-भुलैया में पिछले 21 साल बीत गये हैं, अब और समय बर्बाद नहीं किया जा सकता।
वनाधिकार आंदोलन शीघ्र ही वनाधिकारों, भू-कानूनों और परिसीमन के ज्वलंत मुद्दों पर सघन अभियान की रूपरेखा बना रहा है।
कल अमर शहीद श्रीदेव सुमन जी की पुण्यतिथि पर इस अभियान पर सुमन जी की पवित्र जन्मभूमि “जौल” गांव में विचार-विमर्श के उपरान्त 25 जुलाई को आगे की रूप-रेखा का निर्धारण किया जायेगा।