उक्रांद: पुनर्जागरण ?
विक्रम बिष्ट
नई टिहरी। सोमवार 23 अगस्त उत्तराखंड में वास्तव में उक्रांद के नाम रहा है। ये ही उत्तराखंड के असल मुद्दे हैं, जिनकी गूंज देहरादून की सड़कों पर सुनाई दी है। पता नहीं प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत ने सुनी या दिल्ली, लखनऊ से ठूंसी गयी रुई कानों से बाहर निकालने की हिम्मत नहीं जुटाई।
उत्तराखंड की जनता को यह याद दिलाना जरूरी है कि यह राज्य वास्तव में इसी का है। इसकी त्याग तपस्या से बना है और इसके भले के लिए बना है। उक्रांद इसकी अपनी आवाज है।
अगस्त महीना उत्तराखंड आंदोलन के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। 9 अगस्त 1987 को उक्रांद के आह्वान पर पृथक राज्य की मांग को लेकर ऐतिहासिक बंद और चक्का जाम रहा था। उस दिन भी रक्षाबंधन का त्यौहार था। इस बार 1 दिन पहले।
9 अगस्त 1994 को पौड़ी में इंद्रमणि बडोनी जी ने अपने सात सहयोगियों के साथ भूख हड़ताल शुरू की थी । वह दशकों की लड़ाई की निर्णायक घटना थी । 23 अगस्त को ही उक्रांद अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी ने लखनऊ विधानसभा में जाकर अपनी सदस्यता से इस्तीफा दिया था।
उत्तराखंड राज्य विधेयक की प्रक्रिया अगस्त 1998 में से शुरू होकर उसी महीने 2000 में पूरी हुई ।
यदि गैरसैंण घेराव के बाद उक्रांद ने यही तेवर जारी रखे होते तो आज स्थितियां कुछ और होती। उम्मीद है कि उक्रांद नेतृत्व आत्ममंथन करेगा।