पित्रों का तर्पण हमेंशा कुतुप बेला में ही करें — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
हरिद्वार। हिंदू धर्म में श्राद्ध का काफी महत्व है। अश्विन मास कृष्ण पक्ष से पितरों का दिन प्रारम्भ हो जाता है जो अश्विन मास की अमावस्या तक रहता है। यही कारण है कि अश्विन मास के कृष्ण पक्ष (पितृ पक्ष) में पितृ श्राद्ध करने का विधान है। नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार के परमाध्यक्ष नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने बताया कि हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। पितरों का स्मरण कर उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म आदि करने से पितृ दोष नहीं लगता है। परिवार की उन्नति होती है तथा पितरों के आशीर्वाद से वंश में वृद्धि होती है। उन्होंने बताया कि अपने पितरों की संतुष्टि एवं उनकी कृपा प्राप्ति के लिए पितृपक्ष में निम्न लिखित उपाय करने चाहिए:
पितृ पक्ष में संभव हो तो प्रतिदिन पवित्र नदी में स्नान करके पितरों के नाम पर तर्पण करना चाहिए तथा उसके बाद दान-पुण्य करना चाहिए।
पितृ पक्ष के पहले दिन से स्नान करने के बाद पितरों को काला तिल और एक सफ़ेद फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके जल से तर्पण करना चाहिए। इससे पितृ दोष दूर होता है।
पितृ पक्ष में विधि-विधान से श्राद्ध कर्म को करना चाहिए एवं इन दिनों पितृ गायत्री का पाठ नियमित करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से घर परिवार में कभी कोई संकट नहीं आता।
पितृ पक्ष में पंचबली भोग का बहुत महत्व है। इसमें पांच विशेष प्राणियों गौ, कुत्ता, कौआ, देव तथा चीटियों को भोग लगाया जाता है। यदि पितृ पक्ष में इन प्राणियों को भोजन कराया जाता है तो पितृ इनके द्वारा ग्रहण भोजन से तृप्त हो जाते है।
उन्होंने बताया कि इस वर्ष पितृ पक्ष का प्रारम्भ सर्वार्थ सिद्धि एवं सिद्धि योग में 21 सितम्बर से हो रहा है। इसमें 6 सर्वार्थ सिद्धि योग तथा दो सिद्धि योग व्याप्त हैं। मान्यता है कि इस योग में किया गया कोई भी कार्य फलदायी और सफल होता है। इस तरह पूरे पितृपक्ष में पितरों की कृपा बरसेगी।
अपने पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए इस दौरान पिंडदान, श्राद्ध किया जाता है ताकि उनकी कृपा बनी रहे और उनके आशीर्वाद से जिंदगी में सफलता, सुख-समृद्धि मिले। पितृ पक्ष का समापन अंतिम श्राद्ध यानी अमावस्या श्राद्ध 06 अक्टूबर को होगा।
अश्विन मास कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले श्राद्ध की सूचि निम्न प्रकार से है:
पूर्णिमा श्राद्ध – 20 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध – 21 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर
दशमी श्राद्ध – 1 अक्टूबर एकादशी श्राद्ध – 2 अक्तूबर
द्वादशी श्राद्ध- 3 अक्टूबर त्रयोदशी श्राद्ध – 4 अक्टूबर
चतुर्दशी श्राद्ध – 5 अक्टूबर अमावस्या श्राद्ध – 6 अक्तूबर
स्वामी रसिक महाराज ने बताया कि इस वर्ष 26 और 27 सितम्बर दोनों ही दिन षष्ठी तिथि लगभग समान रूप से अपराह्नव्यापिनी है। ऐसी स्थिति में धर्मशास्त्र का नियम है कि यह तिथि यदि 60 घड़ी से अधिक हो तो श्राद्ध दूसरे दिन किया जाए। इसलिए षष्ठी का श्राद्ध 26 सितम्बर को न होकर 27 सितम्बर को होगा।
उन्होंने बताया कि जिनकी मृत्यु तिथि पूर्णिमा हो, उनका श्राद्ध प्रोष्ठपदी पूर्णिमा को ही करना चाहिए। इस वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा 20 सितम्बर पूर्णिमा अपराह्नव्यापिनी है। क्योंकि कुतपवेला (अपराह्न काल) पितरों का समय कहा गया है कुतपवेला में ही श्राद्ध करने का शास्त्र नियम है इसलिए “प्रोष्ठपदी” पूर्णिमा का श्राद्ध 20 सितम्बर को होगा। सौभाग्यवती स्त्री का श्राद्ध हमेशा नवमी तिथि में ही किया जाता है भले ही मृत्यु की तिथि कोई अन्य हो। इसी प्रकार सन्यासी का श्राद्ध हमेशा द्वादशी तिथि तथा जिनकी मृत्यु शस्त्र, विष से या अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन ही किया जाता है। चतुर्दशी में सामान्य मृत्यु से मरने वालों का श्राद्ध अमावस्या या त्रयोदशी को करना चाहिए। शास्त्रों में यह भी विधान दिया गया है कि यदि किसी व्यक्ति को अपने पूर्वजों के देहांत की तिथि ज्ञात नहीं है तो ऐसे में इन पूर्वजों का श्राद्ध कर्म आश्विन अमावस्या को किया जा सकता है।