डबल इंजन सरकार या साल 2007
विक्रम बिष्ट*
नई टिहरी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऋषिकेश दौरे में उत्तराखंड को अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए डबल इंजन सरकार की याद दिलाई। भाजपा को इस पर मोहित होने का हक है। लेकिन जमीनी हकीकत से वाकिफ भाजपा के रणनीतिकार जानते हैं कि 2017 दोहराना तो दूर ठीक-ठाक बहुमत हासिल करना बड़ी चुनौती है।
इस तथ्य में कोई दो राय नहीं है कि उत्तराखंड में भाजपा सांगठनिक ढांचे, संस्थाओं के मामले में कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष से मीलों आगे हैं। मोदी का करिश्मा है। प्रधानमंत्री पद के एक भावी प्रबल उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ से जन्म का रिश्ता है। राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति व्यापारिक घालमेल से फैलाया रंगीन मोह जाल है। संक्षेप में भाजपा गोबर के गणेश को पुजवाने में पूर्णतः सक्षम है। पहले यह करिश्मा कांग्रेस के पास था। लोकसभा से लेकर देश की तमाम विधानसभाओं के सदस्यों की संख्या से तुलना करें तो भाजपा आज अपने सबसे अच्छे दिनों में भी कांग्रेस के औसत अच्छे दिनों के आसपास ही दिखाई देती है।
राष्ट्रीय हो या प्रादेशिक स्थानीय स्तर पर नेतृत्व के मामले में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस में गोबर गणेश ही ज्यादा हैं। इसलिए भाजपा को स्वाभाविक बढ़त हासिल है।
बहरहाल आगामी महीनों में उत्तराखंड विधानसभा का चुनावी परिदृश्य 2017 जैसा रहेगा, अभी इसकी उम्मीद बहुत कम है। नोटबंदी उस चुनाव में बड़ा मुद्दा था। आज जनता को भारी परेशानियों के बावजूद! लोग खुश थे कि मोदी ने चोरों की एक झटके में जाहिर स्विट्जरलैंड के खाते धारक नहीं। 5 साल का हिसाब तो भाजपा को ही देना है।
माना जा रहा है कि अलोकप्रिय विधायकों के टिकट कटने तय हैं। पहले लगभग आधे का कयास था। हालांकि उसमें बड़ी उम्र वाले भी शामिल थे । लेकिन अब व्यवहारिक धरातल पर यह संभव नहीं लग रहा है। ऐसे विधायकों में कई इतने ताकतवर हैं कि वे वैकल्पिक उम्मीदवारों के साथ सत्ता में वापसी की भाजपा की आशाओं पर पानी फेर सकते हैं। 60 पार का दावा करने वाली भाजपा के समझदार इतना तो सोचेंगे ही कि कम से कम 2007 से कुछ ऊपर तो रहें।